My India: शिरडी साईं बाबा ( सबका मलिक एक ) SAIBABA OF SHIRDI ( SABAKA MALIK EK )

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शिरडी साईं बाबा ( सबका मलिक एक ) SAIBABA OF SHIRDI ( SABAKA MALIK EK )


शिरडी साईं बाबा

साईंबाबा (जन्म:२८ सितंबर १८३५ [2], मृत्यु: १५ अक्टूबर १९१८) जिन्हें शिरडी साईंबाबा भी कहा जाता है, 
एक भारतीय गुरु, संत एवं फ़क़ीर के रूप में बहुमान्य हैं। उनके अनुयायी उन्हें सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापी मानते हैं।




जीवन-परिचय
जन्म-तिथि एवं स्थान

साईं बाबा का जन्म कब और कहाँ हुआ था एवं उनके माता-पिता कौन थे ये बातें अज्ञात हैं। किसी दस्तावेज से इसका प्रामाणिक पता नहीं चलता है। स्वयं शिरडी साईं ने इसके बारे में कुछ नहीं बताया है। हालाँकि एक कथा के रूप में यह प्रचलित है कि एक बार श्री साईं बाबा ने अपने एक अंतरंग भक्त म्हालसापति को, जो कि बाबा के साथ ही मस्जिद तथा चावड़ी में शयन करते थे, बतलाया था कि "मेरा जन्म पाथर्डी (पाथरी) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मेरे माता-पिता ने मुझे बाल्यावस्था में ही एक फकीर को सौंप दिया था।" जब यह चर्चा चल रही थी तभी पाथरी से कुछ लोग वहाँ आये तथा बाबा ने उनसे कुछ लोगों के सम्बन्ध में पूछताछ भी की। उनके जन्म स्थान एवं तिथि की बात वास्तव में उनके अनुयायियों के विश्वास एवं श्रद्धा पर आधारित हैं। शिरडी साईं बाबा के अवतार माने जाने वाले श्री सत्य साईं बाबा ने अपने पूर्व रूप का परिचय देते हुए शिरडी साईं बाबा के प्रारंभिक जीवन सम्बन्धी घटनाओं पर प्रकाश डाला है जिससे ज्ञात होता है कि उनका जन्म २८ सितंबर १८३५ में तत्कालीन हैदराबाद राज्य के पाथरी नामक गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।







माता-पिता

जन्मतिथि एवं स्थान की तरह ही साईं के माता-पिता के बारे में भी प्रमाणिक रूप से कुछ भी ज्ञात नहीं है। श्री सत्य साईं बाबा द्वारा दिये गये पूर्वोक्त विवरण के अनुरूप उनके पिता का नाम श्री गंगा बावड़िया एवं उनकी माता का नाम देवगिरि अम्मा माना जाता है। ये दोनों शिव-पार्वती के उपासक थे तथा शिव के आशीर्वाद से ही उनके संतान हुई थी। कहा जाता है कि जब साईं अपनी माँ के गर्भ में थे उसी समय उनके पिता के मन में ब्रह्म की खोज में अरण्यवास की अभिलाषा तीव्र हो गयी थी। वे अपना सब कुछ त्याग कर जंगल में निकल पड़े थे। उनके साथ उनकी पत्नी भी थी। मार्ग में ही उन्होंने बच्चे को जन्म दिया था और पति के आदेश के अनुसार उसे वृक्ष के नीचे छोड़ कर चली गयी थी। एक मुस्लिम फकीर उधर से निकले जो निःसंतान थे। उन्होंने ही उस बच्चे को अपना लिया और प्यार से 'बाबा' नाम रखकर उन्होंने उसका पालन-पोषण किया।

बचपन एवं चाँद पाटिल का आश्रय

बाबा का लालन-पालन एक मुसलमान फकीर के द्वारा हुआ था, परंतु बचपन से ही उनका झुकाव विभिन्न धर्मों की ओर था लेकिन किसी एक धर्म के प्रति उनकी एकनिष्ठ आस्था नहीं थी। कभी वे हिन्दुओं के मंदिर में घुस जाते थे तो कभी मस्जिद में जाकर शिवलिंग की स्थापना करने लगते थे। इससे न तो गाँव के हिन्दू उनसे प्रसन्न थे और न मुसलमान। निरंतर उनकी शिकायतें आने के कारण उनको पालने वाले फकीर ने उन्हें अपने घर से निकाल दिया। साईं के जितने वृत्तांत प्राप्त हैं वे सभी उनके किसी न किसी चमत्कार से जुड़े हुए हैं। ऐसे ही एक वृत्तांत के अनुसार औरंगाबाद जिले के धूप गाँव के एक धनाढ्य मुस्लिम सज्जन की खोयी घोड़ी बाबा के कथनानुसार मिल जाने से उन्होंने प्रभावित होकर बाबा को आश्रय दिया और कुछ समय तक बाबा वहीं रहे।

शिरडी में आगमन

चामत्कारिक कथा के तौर पर ही कहा जाता है कि बाबा पहली बार सोलह वर्ष की उम्र में शिरडी में एक नीम के पेड़ के तले पाये गये थे। उनके इस निवास के बारे में कुछ चामत्कारिक कथाएँ प्रचलित हैं। कुछ समय बाद वे वहाँ से अदृश्य हो गये थे। पुनः शिरडी आने एवं उसे निवास स्थान बनाने के संदर्भ में कथा है कि चाँद पाटिल के आश्रय में कुछ समय तक रहने के बाद एक बार पाटिल के एक निकट सम्बन्धी की बारात शिरडी गाँव गयी जिसके साथ बाबा भी गये। विवाह संपन्न हो जाने के बाद बारात तो वापस लौट गयी परंतु बाबा को वह जगह काफी पसंद आयी और वे वही एक जीर्ण-शीर्ण मस्जिद में रहने लगे और जीवनपर्यन्त वहीं रहे।





'
साईं' नाम की प्राप्ति

कहा जाता है कि चाँद पाटिल के सम्बन्धी की बारात जब शिरडी गाँव पहुँची थी तो खंडोबा के मंदिर के सामने ही बैल गाड़ियाँ खोल दी गयी थीं और बारात के लोग उतरने लगे थे। वहीं एक श्रद्धालु व्यक्ति म्हालसापति ने तरुण फकीर के तेजस्वी व्यक्तित्व से अभिभूत होकर उन्हें 'साईं' कहकर सम्बोधित किया। धीरे-धीरे शिरडी में सभी लोग उन्हें 'साईं' या 'साईं बाबा' के नाम से ही पुकारने लगे और इस प्रकार वे 'साईं' नाम से प्रसिद्ध हो गये।

धार्मिक मान्यता

साईं बाबा का पालन-पोषण मुसलमान फकीर के द्वारा हुआ था और बाद में भी वे प्रायः मस्जिदों में ही रहे। उन्हें लोग सामान्यतया मुस्लिम फकीर के रूप में ही जानते थे। वे निरंतर अल्लाह का स्मरण करते थे। वे 'अल्लाह मालिक' कहा करते थे। हालाँकि उन्होंने सभी धर्मों की एकता पर बल दिया है और विभिन्न धर्मावलंबियों को अपने आश्रय में स्थान देते थे। उनके अनुयायी हिन्दू और मुसलमान दोनों थे। उनके आश्रयस्थल (मस्जिदों) में हिन्दुओं के विभिन्न धार्मिक पर्व भी मनाये जाते थे और मुसलमानों के भी। उन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रन्थों के अध्ययन को भी प्रश्रय दिया था। उस समय भारत के कई प्रदेशों में हिन्दू-मुस्लिम द्वेष व्याप्त था, परंतु उनका संदेश था :

"राम और रहीम दोनों एक ही हैं और उनमें किंचित् मात्र भी भेद नहीं है। फिर तुम उनके अनुयायी होकर क्यों परस्पर झगड़ते हो। अज्ञानी लोगों में एकता साधकर दोनों जातियों को मिलजुल कर रहना चाहिए।





🙏🌹 ॐ साँईराम🌹🙏

शिर्डी के साईं बाबा एक साधारण संत, फ़कीर, धार्मिक गुरू थे. जिन्हें इनके भक्तों के द्वारा भगवान का दर्जा दिया गया. जब कोई साधारण इंसान होकर भी असाधारण कार्य कर दे तो हम उसे भगवान के द्वारा किया हुआ चमत्कार ही मानते हैं. बुराई का अंत करने वाले, गरीबों की मदत करने वाले, समाज को एक नई दिशा दिखाने का कार्य करने वाले देव तुल्य ही होते हैं. साईं का चरित्र अनुकरणीय है.
🌹!!श्री सद्गुरू साईनाथार्पणमस्तु ! शुभं भवतु !!🌹
अनंत कोटि ब्रह्माण्ड नायक राजाधिराज योगिराज परब्रह्म श्री सचिदानंद सतगुरु साईनाथ महाराज की जय 
 Anant koti Brahmaand nayak Rajadhiraj yogiraj Parbraham shri Sachidanand Sadguru Sainath Maharaj Ji ki Jai



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ओम साईं राम 
जो भी साईबाबा के भक्त श्रीसाईबाबा संस्थान शिर्डी मैं ऑनलाइन डोनेट  करना चाहते हैं 
नीचे दिए गए डोनेट नऊ पर क्लिक करके डोनेट कर सकते हो 
श्री साईबाबा संस्थान ट्रस्ट शिरडी ऑफिशियल वेबसाइट है 

 

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