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श्री गणेश सहस्रनामावली का पाठ, हर काम में सफलता देता है
Raviwar ke Upay / रविवार के उपाय
1. अगर आप अपनी तरक्की को चार चांद लगाना चाहते हैं तो रविवार के दिन आपको किसी मन्दिर के प्रांगण में या किसी बाग-बगीचे में कोई भी फूल वाला पौधा लगाना चाहिए और उसकी देखभाल करनी चाहिए। लेकिन अगर आप किसी कारणवश रविवार के दिन पौधा न लगा पायें, तो रविवार के दिन पौधा लगाने का संकल्प जरूर लें और दो-चार दिन में जब भी आपको समय मिले, तब लगाएं।
2. अगर आपके परिवार में हमेशा अनबन होती रहती हैं या वैवाहिक जीवन में कुछ समस्या बनी रहती है तो अनुराधा नक्षत्र में एक खाली बोतल लें और उस बोतल में थोड़ा-सा सरसों का तेल, आठ साबुत उड़द के दाने और एक लोहे की कील डालकर ढक्कन से बंद कर दें। अब उस बोतल को अपने ऊपर से सात बार उतारकर, जमीन में दबा दें।
3. अगर आपके घर में धन का अभाव रहता है या आपके पास धन अधिक समय तक नहीं टिकता, तो अनुराधा नक्षत्र में अपने हाथ की लंबाई के बराबर एक काला धागा और एक छोटा-सा कोयला लें। अब काले धागे से उस कोयले को बांधकर, एक कपड़े में लपेटकर अपने धन वाले स्थान पर रख दें या अनुराधा नक्षत्र के दौरान पूरे दिन अपनी जेब में उस कोयले को रखें। जेब में रखने से पहले कोयले को किसी कपड़े में लपेटना न भूलें।
4. अगर आपके निवास स्थान पर या आपके बिजनेस पर किसी की बुरी नजर लग गई है और आपको काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, तो अनुराधा नक्षत्र में पूरे दिन काले चने को पानी में भिगो दें। अब उस भिगोये हुए काले चने के साथ थोड़ी-सी साबुत काली उड़द, काली हल्दी और थोड़ी-सी सरसों लें और एक काले कपड़े में उन्हें एक साथ बांध लें। अब उस पोटली को किसी नदी या तालाब में बहा दें। अगर उस पानी में मछलियां हों, तो और भी अच्छा है।
5. अगर आप अपने जीवन में हर प्रकार से रविवारादी पाना चाहते हैं तो इसके लिए रविवार के दिन आपको मौलश्री के पेड़ की उपासना करनी चाहिए। साथ ही उसको हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए, लेकिन अगर आपको कहीं आस-पास मौलश्री का पेड़ न मिले तो उसकी फोटो इंटरनेट से डाउनलोड करके, उसके दर्शन कर लें। चाहें तो उस फोटो का प्रिंट निकलवाकर अपने घर में भी लगा लें।
7. अगर आप बेहतर स्वास्थ्य के साथ ही लंबी आयु भी पाना चाहते हैं, तो रविवार आपको सूर्यदेव के इस मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए। सूर्यदेव का मंत्र इस प्रकार है- ऊँ घृणिः सूर्याय नमः।
8. अगर आप अपने आस-पास पॉजिटिव ऊर्जा में बढ़ोतरी करना चाहते हैं, तो रविवार आपको सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिए और जल अर्पित करते समय सूर्यदेव के इस मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है- ऊँ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्याय श्रीं।
10. अगर बहन या बुआ के साथ आपके रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे है, तो रविवार के दिन आपको अपने भोजन में से एक रोटी निकालकर अलग रखनी चाहिए और उसके तीन हिस्से करने चाहिए। अब उन तीन हिस्सों में से एक हिस्सा गाय को खिला दें, एक हिस्सा कौवे के लिए रख दें और एक हिस्सा कुत्ते को खाने के लिए दें।
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Shaniwar ke upay / शनिवार के उपाय
शनिवार के उपाय
शनिवार के उपाय से संबंधित इस लेख में हम आपको ऐसे सभी टोटके बताने जा रहे जिनको करने से आप पर शनि देव की कृपा बरसेगी। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में शनि को क्रूर ग्रह कहा जाता है। सूर्य पुत्र शनि न्याय प्रिय और कर्म फलदाता हैं। शनि का कार्य प्रकृति में संतुलन को बनाए रखना है इसलिए कलियुग में शनि पूजा का बहुत महत्व है। ज्योतिष के अनुसार यदि किसी जातक की कुंडली में शनि की साढ़े साती अथवा ढैया चल रही है तो उसके जीवन में कई प्रकार की परेशानियां आती हैं इसलिए शास्त्रों में शनि के बुरे प्रभावों से बचने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। इनमें शनिवार के टोटके, शनिवार के उपाय, शनि ग्रह से बचने के उपाय, शनि की कृपा पाने के उपाय आदि हैं।
शनि के प्रकोप से बचने के 5 सरल उपाय
1. हनुमान चालीसा का पाठ
हनुमान चालीसा शनि देव की कूर दृष्टि से बचने का अचूक उपाय है। यदि आपकी कुंडली में ढैया या साढ़े साती चल रही है और आप शनि के प्रकोप से पीड़ित हैं, तो हनुमान चालीसा का पाठ आपके लिए अचूक उपाय है। श्री हनुमान चालीसा का पाठ शनि के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाता है।
2. शनि मंत्र का जाप
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः!
उपरोक्त मंत्र शनि बीज मंत्र है शनि देव की क्रूर दृष्टि से बचने के लिए और उनका आशीर्वाद पाने के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
ॐ शं शनैश्चरायै नमः!
शनि ग्रह को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवंतु नः!
यह मंत्र शनि देव की कृपा दृष्टि पाने का वैदिक मंत्र है। इसका जाप करने से शनि महाराज हमारे कष्टों को दूर करते हैं।
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥
शनि की उपासना के लिए शनि के इस पौराणिक मंत्र का जाप करना चाहिए।
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तिल, तेल और छायापात्र दान शनि देव को अत्यन्त प्रिय हैं इसलिए इन चीज़ों का दान शनि ग्रह की शान्ति का प्रमुख उपाय माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इनका दान शनि देव द्वारा दिए जाने वाले कष्टों को दूर करता है। छायापात्र दान करने की एक विधि है जो कि बहुत ही सरल है। इसमें मिट्टी के किसी बर्तन में सरसों का तेल लें और उसमें अपनी परछाई देखकर उसे दान कर दें।
वैदिक ज्योतिष में विभिन्न जड़ों के माध्यम से ग्रहों की शान्ति का विधान है। शनि ग्रह की कृपा दृष्टि पाने के लिए शास्त्रों में धतूरे की जड़ को धारण करने की सलाह दी गई है। धतूरे की जड़ को गले या हाथ में बांधकर इसको धारण किया जा सकता है। इस जड़ी को धारण करने के बाद आपको शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होने लगेगा। धतूरे की जड़ को शनिवार के दिन शनि होरा अथवा शनि के नक्षत्र में धारण करना शुभ होता है।
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5. सात मुखी रुद्राक्ष धारण करें
ज्योतिष शास्त्र में सात मुखी रुद्राक्ष शनि ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए इसको धारण करने से जातक को शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और शनि ग्रह से जनित पीड़ा दूर होती है। इस रुद्राक्ष को सोमवार या शनिवार के दिन गंगा जल से धोकर धारण करने से शनि के कष्टों से राहत मिलती है।
शनिवार रात को अनार की कलम के द्वारा रक्त चन्दन से किसी भोजपत्र पर 'ॐ ह्वीं' मंत्र को लिखें और इसकी नित्य पूजा करें। इससे अपार विद्या, बुद्धि की प्राप्ति होती है।
शनिवार को काले कुत्ते, काली गाय को रोटी और काली चिड़िया को दाना खिलाने से शनि ग्रह की क्रूर दृष्टि दूर होती है और बिगड़े काम बनते हैं।
शनिवार को चीटियों को आटा अथवा मछलियों को दाना खिलाएं, इससे आपकी नौकरी में तरक्की होगी।
शनिवार के दिन शनि ग्रह से संबंधित वस्तुओं (साबुत उड़द, लोहा, तेल, तिल के बीज, काले कपड़े) का दान शनि की होरा एवं शनि ग्रह के नक्षत्रों (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा भाद्रपद) में दोपहर अथवा शाम को करना चाहिए।
काले घोड़े की नाल या फिर नाव की कील से निर्मित अंगूठी को अपनी मध्यमा उंगली में शनिवार के दिन सूर्यास्त के समय धारण करें। यह उपाय शनि के प्रकोप से बचाता है।
शनिवार के दिन सुबह स्नान करने के बाद पीपल को जल अर्पित कर उसकी सात बार परिक्रमा करें और सूर्यास्त के बाद पीपल के वृक्ष पर दीपक प्रज्ज्वलित करें। इससे आपको शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होगा और शनि दोष से मुक्ति मिलेगी।
शनिवार के दिन क्या करे
काले रंग के वस्त्रों का प्रयोग करें।
शमी अथवा पीपल के पेड़ के नीचे जड़ के पास उस कलश को रखकर एक वेदी बनाएं।
वेदी पर काले रंग से रंगे हुए चावलों द्वारा चौबीस दल का कमल बनाएं।
लोहे अथवा टिन की चादर काटकर बनाई गई शनिदेव की प्रतिमा को स्नान कराकर चावलों से बनाए हुए चौबीस दल के कमल पर स्थापित करे।
काले रंग के गंध, पुष्प, धूप, फूल तथा उत्तम प्रकार के नैवेद्य आदि से पूजन करें।
शनि देव के इन नामों का श्रद्धापूर्वक उच्चारण करें - कोणस्थ, पिंगलो बभ्रु, कृष्ण रौद्रोतको, यम, सौरि, मंद, शनैश्चर एवं पिप्पला।
तिल, जौ, उड़द, गुड़, लोहा, सरसों का तेल तथा नीले वस्त्र का दान कों।
आरती व प्रार्थना करके प्रसाद बांटें।
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Kalava Benefits: क्या आपको मालूम है हाथ पर मौली या कलावा क्यों बांधते हैं ...
Kalava Benefits: क्या आपको मालूम है हाथ पर मौली या कलावा क्यों बांधते हैं ...
मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा है। इसे लोग कलावा भी कहते हैंl यज्ञ के दौरान इसे बांधे जाने की परंपरा तो पहले से ही रही है, लेकिन इसको संकल्प सूत्र के साथ ही रक्षा-सूत्र के रूप में तब से बांधा जाने लगा, जबसे असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था। इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता है, जबकि देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए यह बंधन बांधा था। मौली को हर हिन्दू बांधता है। इसे मूलत: रक्षा सूत्र कहते हैं।
मौली का अर्थ
~~~~~~~~~
मौली' का शाब्दिक अर्थ है 'सबसे ऊपर'। मौली का तात्पर्य सिर से भी है। मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है। मौली के भी प्रकार हैं। शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान है इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।
कैसी होती है मौली ?
~~~~~~~~~~~मौली कच्चे धागे (सूत) से बनाई जाती है जिसमें मूलत: 3 रंग के धागे होते हैं- लाल, पीला और हरा, लेकिन कभी-कभी यह 5 धागों की भी बनती है जिसमें नीला और सफेद भी होता है। 3 और 5 का मतलब कभी त्रिदेव के नाम की, तो कभी पंचदेव।
कहां-कहां बांधते हैं मौली ?
~~~~~~~~~~~~~~~मौली बांधने के नियम
~~~~~~~~~~~~~*कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों, उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए।
*मौली कहीं पर भी बांधें, एक बात का हमेशा ध्यान रहे कि इस सूत्र को केवल 3 बार ही लपेटना चाहिए व इसके बांधने में वैदिक विधि का प्रयोग करना चाहिए।
कब बांधी जाती है मौली ?
~~~~~~~~~~~~~
*पर्व-त्योहार के अलावा किसी अन्य दिन कलावा बांधने के लिए मंगलवार और शनिवार का दिन शुभ माना जाता है।
*हर मंगलवार और शनिवार को पुरानी मौली को उतारकर नई मौली बांधना उचित माना गया है। उतारी हुई पुरानी मौली को पीपल के वृक्ष के पास रख दें या किसी बहते हुए जल में बहा दें।
*प्रतिवर्ष की संक्रांति के दिन, यज्ञ की शुरुआत में, कोई इच्छित कार्य के प्रारंभ में, मांगलिक कार्य, विवाह आदि हिन्दू संस्कारों के दौरान मौली बांधी जाती है।
क्यों बांधते हैं मौली? :
* मौली को धार्मिक आस्था का प्रतीक माना जाता है।* किसी अच्छे कार्य की शुरुआत में संकल्प के लिए भी बांधते हैं।
* किसी देवी या देवता के मंदिर में मन्नत के लिए भी बांधते हैं।
* मौली बांधने के 3 कारण हैं-
पहला आध्यात्मिक,दूसरा चिकित्सीय और
तीसरा मनोवैज्ञानिक।
* किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करते समय या नई वस्तु खरीदने पर हम उसे मौली बांधते हैं ताकि वह हमारे जीवन में शुभता प्रदान करे।
* हिन्दू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म यानी पूजा-पाठ, उद्घाटन, यज्ञ, हवन, संस्कार आदि के पूर्व पुरोहितों द्वारा यजमान के दाएं हाथ में मौली बांधी जाती है।
* इसके अलावा पालतू पशुओं में हमारे गाय, बैल और भैंस को भी पड़वा, गोवर्धन और होली के दिन मौली बांधी जाती है।
मौली करती है रक्षा
~~~~~~~~~~~मौली को कलाई में बांधने पर कलावा या उप मणिबंध करते हैं। हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं। भाग्य व जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। इन तीनों रेखाओं में दैहिक, दैविक व भौतिक जैसे त्रिविध तापों को देने व मुक्त करने की शक्ति रहती है।
इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु व ब्रह्मा हैं। इसी तरह शक्ति, लक्ष्मी व सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता है। जब हम कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं तो यह तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती है। इस रक्षा-सूत्र को संकल्पपूर्वक बांधने से व्यक्ति पर मारण, मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन, भूत-प्रेत और जादू-टोने का असर नहीं होता।
आध्यात्मिक पक्ष
~~~~~~~~~~*यह मौली किसी देवी या देवता के नाम पर भी बांधी जाती है जिससे संकटों और विपत्तियों से व्यक्ति की रक्षा होती है। यह मंदिरों में मन्नत के लिए भी बांधी जाती है।
*इसमें संकल्प निहित होता है। मौली बांधकर किए गए संकल्प का उल्लंघन करना अनुचित और संकट में डालने वाला सिद्ध हो सकता है। यदि आपने किसी देवी या देवता के नाम की यह मौली बांधी है तो उसकी पवित्रता का ध्यान रखना भी जरूरी हो जाता है।
*कमर पर बांधी गई मौली के संबंध में विद्वान लोग कहते हैं कि इससे सूक्ष्म शरीर स्थिर रहता है और कोई दूसरी बुरी आत्मा आपके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती है। बच्चों को अक्सर कमर में मौली बांधी जाती है। यह काला धागा भी होता है। इससे पेट में किसी भी प्रकार के रोग नहीं होते।
चिकित्सीय पक्ष
~~~~~~~~~प्राचीनकाल से ही कलाई, पैर, कमर और गले में भी मौली बांधे जाने की परंपरा के चिकित्सीय लाभ भी हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार इससे त्रिदोष अर्थात वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है। पुराने वैद्य और घर-परिवार के बुजुर्ग लोग हाथ, कमर, गले व पैर के अंगूठे में मौली का उपयोग करते थे, जो शरीर के लिए लाभकारी था। ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक, डायबिटीज और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिए मौली बांधना हितकर बताया गया है।
हाथ में बांधे जाने का लाभ
~~~~~~~~~~~~~~~कमर पर बांधी गई मौली
~~~~~~~~~~~~~मनोवैज्ञानिक लाभ
~~~~~~~~~~~।। जय जय सियाराम ।।
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( Purnima Tithi ) पूर्णिमा तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में महत्त्व
( Purnima Tithi ) पूर्णिमा तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में महत्त्व
〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️पूर्णिमा तिथि जिसमें चंद्रमा पूर्णरुप में मौजूद होता है। पूर्णिमा तिथि को सौम्य और बलिष्ठ तिथि कहा जाता है। इस तिथि को ज्योतिष में विशेष बल महत्व दिया गया है। पूर्णिमा के दौरान चंद्रमा का बल अधिक होता है और उसमें आकर्षण की शक्ति भी बढ़ जाती है। वैज्ञानिक रुप में भी पूर्णिमा के दौरान ज्वार भाटा की स्थिति अधिक तीव्र बनती है। इस तिथि में समुद्र की लहरों में भी उफान देखने को मिलता है। यह तिथि व्यक्ति को भी मानसिक रुप से बहुत प्रभावित करती है। मनुष्य के शरीर में भी जल की मात्रा अत्यधिक बताई गई है ऎसे में इस तिथि के दौरान व्यक्ति की भावनाएं और उसकी ऊर्जा का स्तर भी बहुत अधिक होता है।
पूर्णिमा को धार्मिक आयोजनों और शुभ मांगलिक कार्यों के लिए शुभ तिथि के रुप में ग्रहण किया जाता है। धर्म ग्रंथों में इन दिनों किए गए पूजा-पाठ और दान का महत्व भी मिलता है। पूर्णिमा का दिन यज्ञोपवीत संस्कार जिसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं किया जाता है। इस दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है। इस प्रकार इस दिन की गई पूजा से भगवान शीघ्र प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।
महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर अपने सौभाग्य और संतान की कामना पूर्ति करती है। बच्चों की लंबी आयु और उसके सुख की कामना करती हैं। पूर्णिमा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नामों से जाना जाता है और उसके अनुसार पर्व रुप में मनाया जाता है।
पूर्णिमा तिथि में जन्में जातक
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️जिस व्यक्ति का जन्म पूर्णिमा तिथि में हुआ हो, वह व्यक्ति संपतिवान होता है। उस व्यक्ति में बौद्धिक योग्यता होती है। अपनी बुद्धि के सहयोग से वह अपने सभी कार्य पूर्ण करने में सफल होता है। इसके साथ ही उसे भोजन प्रिय होता है। उत्तम स्तर का स्वादिष्ट भोजन करना उसे बेहद रुचिकर लगता है। इस योग से युक्त व्यक्ति परिश्रम और प्रयत्न करने की योग्यता रखता है। कभी- कभी भटक कर वह विवाह के बाद विपरीत लिंग में आसक्त हो सकता है।
व्यक्ति का मनोबल अधिक होता है, वह परेशानियों से आसानी से हार नही मानता है। जातक में जीवन जीने की इच्छा और उमंग होती है। वह अपने बल पर आगे बढ़ना चाहता है। व्यक्ति में दिखावे की प्रवृत्ति भी हो सकती है। जल्दबाजी में अधिक रह सकता है।
ऐसे व्यक्ति की कल्पना शक्ति अच्छी होती है। वह अपनी इस योग्यता से भीड़ में भी अलग दिखाई देता है। आकर्षण का केन्द्र बनता है। बली चंद्रमा व्यक्ति में भावनात्मक, कलात्मक, सौंदर्यबोध, रोमांस, आदर्शवाद जैसी बातों को विकसित करने में सहयोग करता है। व्यक्ति कलाकार, संगीतकार या ऎसी किसी भी प्रकार की अभिव्यक्ति को मजबूती के साथ करने की क्षमता भी रखता है।
मजबूत मानसिक शक्ति के कारण रुमानी भी होते हैं कई बार उन्मादी और तर्कहीन व्यवहार भी कर सकते हैं जो इनके लिए नकारात्मक पहलू को भी दिखाती है और व्यक्ति अत्यधिक महत्वाकांक्षी भी होता है।
सत्यनारायण व्रत
〰️〰️〰️〰️〰️पूर्णिमा तिथि को सत्यनारायण व्रत की पूजा की जाने का विधान होता है। प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि को लोग अपने सामर्थ्य अनुसार इस दिन व्रत रखते हैं अगर व्रत नहीं रख पाते हैं तो पूजा पाठ और कथा श्रवण जरुर करते हैं। सत्यनारायण व्रत में पवित्र नदियों में स्नान-दान की विशेष महत्ता बताई गई है। इस व्रत में सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है। सारा दिन व्रत रखकर संध्या समय में पूजा तथा कथा की जाती है। चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। कथा और पूजन के बाद बाद प्रसाद अथवा फलाहार ग्रहण किया जाता है। इस व्रत के द्वारा संतान और मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
पूर्णिमा तिथि योग
〰️〰️〰️〰️〰️〰️पूर्णिमा तिथि के दिन जब चन्द्र और गुरु दोनों एक ही नक्षत्र में हो, तो ऎसी पूर्णिमा विशेष रुप से कल्याणकारी कही गई है। इस योग से युक्त पूर्णिमा में दान आदि करना शुभ माना गया है। इस तिथि के स्वामी चन्द्र देव है। पूर्णिमा तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को चन्द्र देव की पूजा नियमित रुप से करनी चाहिए।
पूर्णिमा तिथि महत्व
〰️〰️〰️〰️〰️〰️इस तिथि के दिन सूर्य व चन्द्र दोनों एक दूसरे के आमने -सामने होते है, अर्थात एक-दूसरे से सप्तम भाव में होते है। इसके साथ ही यह तिथि पूर्णा तिथि कहलाती है। यह तिथि अपनी शुभता के कारण सभी शुभ कार्यो में प्रयोग की जा सकती है। इस तिथि के साथ ही शुक्ल पक्ष का समापन होता है। तथा कृष्ण पक्ष शुरु होता है। एक चन्द्र वर्ष में 12 पूर्णिमाएं होती है। सभी पूर्णिमाओं में कोई न कोई शुभ पर्व अवश्य आता है। इसलिए पूर्णिमा का आना किसी पर्व के आगमन का संकेत होता है।
पूर्णिमा तिथि में किए जाने वाले काम
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️पूर्णिमा तिथि के दिन गृह निर्माण किया जा सकता है।
पूर्णिमा के दिन गहने और कपड़ों की खरीदारी की जा सकती है।
किसी नए वाहन की खरीदारी भी कर सकते हैं।
यात्रा भी इस दिन की जा सकती है।
इस तिथि में शिल्प से जुड़े काम किए जा सकते हैं।
विवाह इत्यादि मांगलिक कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं।
पूजा पाठ और यज्ञ इत्यादि कर्म इस तिथि में किए जा सकते हैं।
12 माह की पूर्णिमा
〰️〰️〰️〰️〰️〰️चैत्र माह की पूर्णिमा, इस दिन हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है।
वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती का पर्व मनाया जाता है।
ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन वट सावित्री और कबीर जयंती मनाई जाती है।
आषाढ़ माह की पूर्णिमा गुरू पूर्णिमा के रुप में मनाई जाती है।
श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन रक्षाबन्धन मनाया जाता है।
भाद्रपद माह की पूर्णिमा के दिन पूर्णिमा श्राद्ध संपन्न होता है।
अश्विन माह की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाती है।
कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंति और गुरुनानक जयंती मनाई जाती है।
मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन श्री दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है।
पौष माह की पूर्णिमा को शाकंभरी जयंती मनाई जाती है।
माघ माह की पूर्णिमा को श्री ललिता जयंती मनाई जाती है।
फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन होली का त्यौहार मनाया जाता है।
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