यह भी समझ लेना जरूरी है कि परमात्मा की शक्ति बहुत विशिष्ट ढंग की शक्ति है। शक्ति तो विद्युत भी है। शक्ति तो कशिश भी है। शक्ति तो चारों तरफ व्याप्त है। परमात्मा शक्ति है, इतना कहने से भी बात पूरी नहीं होती। परमात्मा सब्जेक्टिव एनर्जी है, विषयीगत शक्ति है।
।। अथ श्रीशिवगुरुस्तोत्रम् ।।
संविद्रूपाय शान्ताय शम्भवे सर्वसाक्षिणे।
शेमुषी-सिद्धरूपाय शिवाय गुरवे नमः।।१।।
त्रैलोक्यसम्पदालेख्य-समुल्लेखनभित्तये।
सच्चिदानन्दरूपाय शिवाय गुरवे नमः।।२।।
देशकालानवच्छिन्न-दृष्टिमात्रस्वरूपिणे।
देशिकौघत्रयान्ताय शिवाय गुरवे नमः।।३।।
विश्वात्मने तैजसाय प्राज्ञाय परमात्मने।
विश्वावस्थाविहीनाय शिवाय गुरवे नमः।।४।।
विवेकिनां विवेकाय विमर्शाय विमर्शिनाम्।
प्रकाशानां प्रकाशाय शिवाय गुरवे नमः।।५।।
परतन्त्राय भक्तानां स्वतन्त्राय दयालवे।
विद्यावतारदेहाय शिवाय गुरवे नमः।।६।।
पाशच्छेद-प्रवीणाय प्रपञ्चोपशमाय च।
प्रणवाब्जपतङ्गाय शिवाय गुरवे नमः।।७।।
नवाय नवरूपाय नवनादविलासिने।
निरञ्जनपदेशाय शिवाय गुरवे नमः।।८।।
संविन्मुद्राय भद्राय सर्वविद्याप्रदायिने।
संवित्सिंहासनस्थाय शिवाय गुरवे नमः।।९।।
सर्वागममोक्तिकलितं स्तोत्रं शिवगुरोः परम्।
संवित्साधनसारांशं यः पठेत् सिद्धिभाग् भवेत्।।१०।।
।। इति श्रीशिवगुरुस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
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