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नवरात्री के छठे दिन आदि शक्ति माँ दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की सुख-समृद्धि पाने के विशेष उपाय और उपासना विधि।

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नवरात्री के छठे दिन आदि शक्ति माँ दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की उपासना विधि एवं सुख-समृद्धि पाने के विशेष उपाय

माँ कात्यायनी स्वरूप


श्री दुर्गा माँ का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी है। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना होती है। इनकी आराधना से भक्त का हर काम सरल एवं सुगम होता है। चन्द्रहास नामक तलवार के प्रभाव से जिनका हाथ चमक रहा है, श्रेष्ठ सिंह जिसका वाहन है।

महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने इनका पालन-पोषण किया तथा महर्षि कात्यायन की पुत्री और उन्हीं के द्वारा सर्वप्रथम पूजे जाने के कारण देवी दुर्गा को कात्यायनी कहा गया। देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है, माँ कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं। देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर अद्भुत शक्ति का संचार होता है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने पर उसे सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है। माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है। यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं। इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं, इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है अन्य हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है।

माँ कात्यायनी पूजा विधि

जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के छठे दिन माँ कात्यायनी जी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। माँ कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं। इनकी पूजा के पश्चात देवी कात्यायनी जी की पूजा कि जाती है। पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है

माँ कात्यायनी का सामान्य मंत्र

चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

माँ कात्यायनी ध्यान मंत्र

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥

माँ कात्यायनी स्तोत्र पाठ

कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

माँ कात्यायनी कवच

कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥

माँ कात्यायनी जी की कथा

देवी कात्यायनी जी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ॠषि हुए तथा उनके पुत्र ॠषि कात्य हुए, उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध कात्य गोत्र से, विश्वप्रसिद्ध ॠषि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। देवी कात्यायनी जी देवताओं ,ऋषियों के संकटों को दूर करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न होती हैं। महर्षि कात्यायन जी ने देवी पालन पोषण किया था। जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था और ॠषि कात्यायन ने भगवती जी कि कठिन तपस्या, पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलायीं। महर्षि कात्यायन जी की इच्छा थी कि
भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। देवी ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार की तथा अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेने के पश्चात शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनों तक कात्यायन ॠषि ने इनकी पूजा की, दशमी को देवी ने महिषासुर का वध किया ओर देवों को महिषासुर के अत्याचारों से मुक्त किया।

नवरात्रि षष्ठी तिथि को कार्य सिद्धि का मन्त्र

सर्व मंगल माँड़गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बिके गौरी नारायणी नामोस्तुते ।।

नवरात्रि षष्ठी तिथि में मनोकामना सिद्धि के उपाय

1👉 जो लोग फिल्म इन्डस्ट्री या ग्लैमर के क्षेत्र से जुड़े हुए है, देशी घी का तिलक देवी माँ को लगाएं । देवी माँ के सामने देशी घी का दीपक जरुर जलाएं | ऐसा करने से फिल्म इन्डस्ट्री या ग्लैमर के क्षेत्र में सफलता तय है।

2👉 खेलकूद के क्षेत्र सफलता पाने के लिए देवी माँ को सिन्दूर और शहद मिलाकर तिलक करें। अपनी माँ का आशीर्वाद जरुर ले । दोनों माँ का आशीर्वाद आपको सफलता जरुर दिलाएगा।

3👉 राजनीती के क्षेत्र में सफलता पाने के लिए लाल कपड़े में 21 चूड़ी,2 जोड़ी चांदी की बिछिया, 5 गुड़हल के फूल, 42 लौंग, 7 कपूर और इत्र बांधकर देवी के चरणों में अर्पित करें। सफलता जरुर मिलेगी।

4👉 प्रतियोगिता में सफलता के लिए 7 प्रकार की दालो का चूरा बनाकर चींटियों को खिलाने से सफलता मिलेगी।

5👉 हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए कुमकुम, लाख,कपूर, सिन्दूर, घी, मिश्री और शहद का पेस्ट तैयार कर लें। इस पेस्ट से देवी माँ को तिलक लगाएं। अपने मस्तक पर भी पेस्ट का टीका लगाएं। आपको जरुर सफलता मिलेगी।

6👉 प्रत्येक क्षेत्र में सफलता पाने के लिए मिटटी को घी और पानी में सानकर ९ गोलिया बना लीजिये। इन गोलियों को छायां में सुखा लीजिये। इन गोलियों को पीले सिन्दूर की कटोरी में भरकर देवी को चढ़ा दीजिये। नवमी दिन इन गोलियों को नदी में जरुर बहा दीजिये और सिन्दूर को संभाल कर रखिये। जरुरी काम से जाते समय हर सिन्दूर का टीका लगाइए सफलता जरुर मिलेगी।

7👉 ग्रह कलह निवारण के लिए करें यह उपाय

लकड़ी की चौकी बिछाएं। उसके ऊपर पीला वस्त्र बीछाएं। चौकी पर पांच अलग-अलग दोनो पर अलग-अलग मिठाई रखें। प्रत्येक दोनों में पांच लौंग, पांच इलायची और एक नींबू रखें। धूप-दीप, पष्प अक्षत अर्पित करने के उपरांत एक माला ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ कात्यायनी देव्यै नम: और एक माला शनि पत्नी नाम स्तुति की करें। तत्पश्चात यह समस्त सामग्री किसी पीपल के पेड़ के निचे चुपचाप रखकर आना चाहिए। बहुत जरूरी है ग्रह प्रवेश से पहले हाथ-पैर अवश्य धो लें।

माँ कात्यायनी जी की आरती


जय जय अम्बे जय कात्यानी। 
जय जगमाता जग की महारानी।।
बैजनाथ स्थान तुम्हारा।
वहा वरदाती नाम पुकारा।।
कई नाम है कई धाम है।
यह स्थान भी तो सुखधाम है।।
हर मंदिर में ज्योत तुम्हारी।
कही योगेश्वरी महिमा न्यारी।।
हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मंदिर में भगत है कहते।।
कत्यानी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की।।
झूठे मोह से छुडाने वाली।
अपना नाम जपाने वाली।।
ब्रेह्स्पतिवार को पूजा करिए।
ध्यान कात्यानी का धरिये।।
हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी।।
जो भी माँ को 'चमन' पुकारे।
कात्यानी सब कष्ट निवारे।।

माँ दुर्गा की आरती
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जय अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…
कनक समान कलेवर, रक्तांबर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती ॥ ॐ जय…
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ॐ जय…
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भय दूर करे ॥ॐ जय…
ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ओम जय अंबे गौरी
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Navratri 5 Day:- पंचम_दुर्गा_श्री_स्कंदमाता देवी की कहानी पूजा का महत्व तंत्र और मंत्र के लाभ के बारे में जानें

🕉️‼️🚩🙏#_जय_माता_दी🙏🌷🚩‼️🕉️

                              🐅🐅🐅ॐसत्य जय माता दी 🌹🙏🐅🐅🐅

Navratri 5 Day:- पंचम_दुर्गा_श्री_स्कंदमाता देवी की कहानी पूजा का महत्व तंत्र और मंत्र के लाभ के बारे में जानें


🌹🌺🙏पंचम_दुर्गा_श्री_स्कंदमाता🙏🌺🌹

दुर्गा पूजा के पांचवे दिन देवताओं के सेनापति कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा होती है. कुमार कार्तिकेय को ग्रंथों में सनत-कुमार, स्कन्द कुमार के नाम से भी पुकारा गया है. माता इस रूप में पूर्णत: ममता लुटाती हुई नज़र आती हैं. माता का पांचवा रूप शुभ्र अर्थात श्वेत है. जब अत्याचारी दानवों का अत्याचार बढ़ता है तब माता संत जनों की रक्षा के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का अंत करती हैं. 

माता का स्वरूप :
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देवी स्कन्दमाता की चार भुजाएं हैं, माता अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और एक भुजा में भगवान स्कन्द या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिये बैठी हैं. मां का चौथा हाथ भक्तो को आशीर्वाद देने की मुद्रा मे है.देवी स्कन्द माता ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं इन्हें ही माहेश्वरी और गौरी के नाम से जाना जाता है. यह पर्वत राज की पुत्री होने से पार्वती कहलाती हैं, महादेव की वामिनी यानी पत्नी होने से माहेश्वरी कहलाती हैं और अपने गौर वर्ण के कारण देवी गौरी के नाम से पूजी जाती हैं. 

क्यों पड़ा स्कंद माता नाम :
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माता को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है अत: मां को अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है. जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते हैं मां उस पर अपने पुत्र के समान स्नेह लुटाती हैं.

🥀“सिंहासनगता नित्यं पद्याञ्चितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥“🥀

श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं।
इनकी आराधना से मनुष्य सुख-शांति की प्राप्ति करता है। सिंह के आसन पर विराजमान तथा कमल के पुष्प से सुशोभित दो हाथों वाली यशस्विनी देवी स्कन्दमाता शुभदायिनी हैं।
   

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नवरात्रि की पंचमी तिथि : स्कंदमाता की पूजा

माँ दुर्गा का पंचम रूप स्कन्दमाता के रूप में जाना जाता है. भगवान स्कन्द कुमार (कार्तिकेय)की माता होने के कारण दुर्गा जी के इस पांचवे स्वरूप को स्कंद माता नाम प्राप्त हुआ है. भगवान स्कन्द जी बालरूप में माता की गोद में बैठे होते हैं इस दिन साधक का मन विशुध्द चक्र में अवस्थित होता है. स्कन्द मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजायें हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कन्द को गोद में पकडे हैं और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल पकडा हुआ है। माँ का वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं। इसी से इन्हें पद्मासना की देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है| माँ स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं| इनकी उपासना करने से साधक अलौकिक तेज की प्राप्ति करता है | यह अलौकिक प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता है| एकाग्रभाव से मन को पवित्र 
करके माँ की स्तुति करने से दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है|
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स्कन्दमाता की पूजा विधि :

कुण्डलिनी जागरण के उद्देश्य से जो साधक दुर्गा मां की उपासना कर रहे हैं उनके लिए दुर्गा पूजा का यह दिन विशुद्ध चक्र की साधना का होता है. इस चक्र का भेदन करने के लिए साधक को पहले मां की विधि सहित पूजा करनी चाहिए. पूजा के लिए कुश अथवा कम्बल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा प्रक्रिया को उसी प्रकार से शुरू करना चाहिए जैसे आपने अब तक के चार दिनों में किया है फिर इस मंत्र से देवी की प्रार्थना करनी चाहिए “सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया. शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी."
अब पंचोपचार विधि से देवी स्कन्दमाता की पूजा कीजिए. नवरात्रि की पंचमी तिथि को कहीं कहीं भक्त जन उद्यंग ललिता का व्रत भी रखते हैं. इस व्रत को फलदायक कहा गया है. जो भक्त देवी स्कन्द 
माता की भक्ति-भाव सहित पूजन करते हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है. देवी की कृपा से भक्त की मुरादें पूरी होती हैं और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि बनी रहती है.
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🌼स्कन्दमाता की आराधना का मंत्र :

सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया |
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

🌸स्कन्दमाता का ध्यान मंत्र :

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।

धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥

प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥
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☘स्कन्दमाता का स्तोत्र पाठ :

नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥

शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥

महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥

अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥

नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥

सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥

तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥

सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥

स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥

पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्


🌷स्कन्दमाता का कवच पाठ :

ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा।
हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥

श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वांग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥

वाणंवपणमृते हुं फ्ट बीज समन्विता।
उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠतेअवतु॥

इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी।
सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥

वात, पित्त, कफ जैसी बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए और माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिए || 

नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती पाठ करने से साधक को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है.

🌺प्रेम से बोलिए स्कंद माता की जय जय🌺
       🌲 सुप्रभात वंदन अभिनंदन जी 🌲
आप सभी मित्रों का दिन शुभ और मंगलमय हो




Navratri 4 Day:- देवी कुष्मांडा का मंत्र पूजन और उपाय



नवरात्रि का चौथा दिन: देवी कुष्मांडा का मंत्र पूजन और उपाय 


नवरात्रि के चौथे दिन की अधिष्ठात्री देवी कुष्मांडा हैं। देवी कुष्मांडा को ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने वाली देवी माना जाता है। वे आठ भुजाओं वाली हैं और सिंह पर विराजमान रहती हैं। उनके दसों दिशाओं में विस्तृत रूप को देखकर ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी।


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देवी कुष्मांडा का महत्व


देवी कुष्मांडा को ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने वाली देवी होने के कारण अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है। वे अपने भक्तों को आरोग्य, समृद्धि और सुख प्रदान करती हैं। देवी कुष्मांडा की पूजा करने से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

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देवी कुष्मांडा की पूजन विधि


* शास्त्रों के अनुसार देवी कुष्मांडा की पूजा का विधान इस प्रकार है:

* सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

* पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और दीपक जलाएं।

* देवी कुष्मांडा की प्रतिमा या चित्र को धूप-दीप दिखाएं।

* कुमकुम, चंदन और फूल चढ़ाएं।

* देवी कुष्मांडा का ध्यान करते हुए निम्नलिखित मंत्र का जाप करें:

* वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥

* देवी कुष्मांडा को फल, फूल और मिठाई का भोग लगाएं।

* आरती करें और देवी से अपने मन की कामनाएं मांगें।

* पूजा का समय: नवरात्रि के चौथे दिन सुबह या शाम के समय देवी कुष्मांडा की पूजा की जा सकती है।

शुभ रंग

देवी कुष्मांडा को पीला रंग प्रिय है। इसलिए इस दिन पीले रंग के वस्त्र धारण करने और पीले रंग के फूल चढ़ाने का विशेष महत्व है।

प्रसाद भोग

देवी कुष्मांडा को फल, फूल और मिठाई का भोग लगाया जाता है। आप देवी को केले, अनार, सेब, संतरा आदि फल चढ़ा सकते हैं। इसके अलावा, आप देवी को खीर, हलवा या अन्य मिठाई भी चढ़ा सकते हैं।

बीज मंत्र

देवी कुष्मांडा का बीज मंत्र "क्लीं" है। इस मंत्र का जाप करने से देवी की कृपा प्राप्त होती है।
 

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कथा

देवी कुष्मांडा की कथा के अनुसार, ब्रह्मांड के उत्पत्ति से पहले अंधकार छाया हुआ था। तब देवी कुष्मांडा ने अपनी एक मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की। इसीलिए उन्हें ब्रह्मांड की माता भी कहा जाता है।

उपाय

* देवी कुष्मांडा की पूजा करने से स्वास्थ्य लाभ होता है।

* देवी कुष्मांडा की पूजा करने से धन प्राप्ति होती है।

* देवी कुष्मांडा की पूजा करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।

* देवी कुष्मांडा की पूजा करने से मन शांत होता है।

आरती

देवी कुष्मांडा की आरती

या देवी सर्वभूतेषु माँ कुष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

माँ कुष्माण्डा तुम जगदम्बा, तुम हो आदि शक्ति।

तुमसे ही सब जग बना है, तुम हो ब्रह्मांड की माता।।

तुम हो अष्टभुजाधारिणी, सिंह वाहन पर सवार।

तुमसे ही सब जग जगमगाता, तुम हो अंधकार हार।।

तुम हो शक्ति स्वरूपिणी, तुम हो दुःखों का नाश।

तुम हो भक्तों की रक्षक, तुम हो सभी का आधार।।

नोट: यह जानकारी सामान्य जानकारी के लिए है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को करने से पहले किसी विद्वान से सलाह लेना उचित होगा।

नवरात्रि के इस पावन पर्व पर माँ कुष्मांडा आप सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें।




Navratri 3 Day:- माता चंद्रघंटा देवी की कहानी पूजा का महत्व तंत्र और मंत्र के लाभ के बारे में जानें




नवरात्रि की 3 देवी माता चंद्रघंटा देवी की कहानी पूजा का महत्व तंत्र और मंत्र


नवरात्रि के तीसरे दिन की माता चंद्रघंटा की कहानी:


माता चंद्रघंटा देवी दुर्गा के नौ रूपों में से तीसरा रूप हैं। इनकी पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। माता चंद्रघंटा का नाम चंद्र और घंटा से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है चंद्रमा की तरह चमकने वाली घंटा।


माता चंद्रघंटा की कहानी:


कथाओं के अनुसार, माता चंद्रघंटा ने भगवान शिव के साथ विवाह करने के लिए तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि वे उनकी पत्नी बनेंगी। लेकिन भगवान शिव की पहली पत्नी सती की मृत्यु के बाद, भगवान शिव ने माता चंद्रघंटा से विवाह करने से इनकार कर दिया|





इसके बाद माता चंद्रघंटा ने भगवान शिव को समझाया कि वे उनकी पत्नी बनने के लिए ही अवतरित हुई हैं। भगवान शिव ने उनकी बात मान ली और उन्हें अपनी पत्नी बना लिया।




माता चंद्रघंटा की पूजा का महत्व:





माता चंद्रघंटा की पूजा करने से व्यक्ति को शांति और सुख प्राप्त होता है। उनकी पूजा से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं और वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल होता है।




माता चंद्रघंटा की पूजा करने के लिए निम्नलिखित मंत्रों का जाप करना चाहिए:



"ॐ श्रीं चंद्रघंटायै नमः"

"ॐ ऐं चंद्रघंटायै नमः"





माता चंद्रघंटा की पूजा करने के लिए निम्नलिखित तंत्रों का उपयोग करना चाहिए:


श्वेत चंदन
लाल फूल
लाल वस्त्र
गुड़ और चना
धूप और दीप


माता चंद्रघंटा की पूजा करने से व्यक्ति को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:


शांति और सुख
सकारात्मक परिवर्तन
लक्ष्यों की प्राप्ति
आत्मविश्वास में वृद्धि
मानसिक शांति


नवरात्रि का यह पर्व केवल आस्था का नहीं, बल्कि आत्मिक विकास का भी है। माता चंद्रघंटा की आराधना से हम अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। इस नवरात्रि, मातृ चंद्रघंटा के प्रति अपनी श्रद्धा और प्रेम व्यक्त करें और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति करें।




कुल मिलाकर, माता चंद्रघंटा की पूजा करना व्यक्ति के लिए बहुत ही लाभदायक होता है। उनकी पूजा से व्यक्ति को शांति और सुख प्राप्त होता है और वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल होता है।




आप सभी को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ!




5 कारण : क्यों श्रावण का महीना भगवान शिव को प्रिय है




lord shiva पांच कारण : क्यों श्रावण का महीना भगवान शिव को प्रिय है


‘सावन’ का महीना मानसून सीजन की पहली बारिश के साथ शुरू होता है। हिंदू परंपरा के अनुसार, सावन साल के सबसे पवित्र महीनों में से एक है। यह शुभ महीना भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है। इस वर्ष, भगवान शिव के भक्त दो महीने तक अपने भगवान की पूजा कर सकेंगे, क्योंकि सावन का महीना एक के बजाय कुछ महीनों का होगा। 19 साल में पहली बार इस साल सावन दो महीने से अधिक मनाया जाएगा।


पांच कारण : क्यों श्रावण का महीना भगवान शिव को प्रिय है

पांच कारण या पौराणिक तथ्य हैं कि क्यों श्रावण का महीना भगवान शिव को प्रिय है।

1)पहला कारण    

मार्कंडेय, मार्कंडु ऋषि के पुत्र हैं, जिन्होंने लंबी उम्र के लिए श्रावण के महीने में कठोर तपस्या किया था। जिससे उनको शिव की कृपा प्राप्त हुई , जिसके सामने मृत्यु के देवता यमराज भी झुक गए।


2)दूसरा कारण 

यह है कि भगवान शिव हर सावन में पृथ्वी पर संतुष्ट होकर अपनी ससुराल जाते थे, जहां उनका जलाभिषेक कर स्वागत किया जाता था।

3)तीसरा कारण 

यह है कि पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी श्रावण मास में समुद्र मंथन हुआ था। मंथन में निकले विष को भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और उनका नाम नीलकंठ भी पड़ा। .उस समय उनके गले की जलन को शांत करने के लिए देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया।

4)चौथा कारण 

यह है कि शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयं जल हैं, इसलिए उन पर चढ़ाया जाने वाला जल एक तरह से जल में ही पाया जाता है, इसलिए शिव जी को जल का अभिषेक प्रिय है।

5)पांचवां कारण 

यह है कि चातुर्मास की शुरुआत के साथ श्रावण माह में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं, इसलिए सारी जिम्मेदारी भगवान शिव पर आ जाती है। इसलिए यह महीना भगवान शिव को प्रिय है।



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कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है?

कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है?


सोना :-

सोना एक गर्म धातु है। सोने से बने पात्र में भोजन बनाने और करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों हिस्से कठोर, बलवान, ताकतवर और मजबूत बनते है और साथ साथ सोना आँखों की रौशनी बढ़ता है।


चाँदी :-

चाँदी एक ठंडी धातु है, जो शरीर को आंतरिक ठंडक पहुंचाती है। शरीर को शांत रखती है इसके पात्र में भोजन बनाने और करने से दिमाग तेज होता है, आँखों स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष, कफ और वायुदोष को नियंत्रित रहता है।


कांसा :-

काँसे के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ाती है। लेकिन काँसे के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है। कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल ३ प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं।


तांबा :-

तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, रक्त शुद्ध होता है, स्मरण-शक्ति अच्छी होती है, लीवर संबंधी समस्या दूर होती है, तांबे का पानी शरीर के विषैले तत्वों को खत्म कर देता है इसलिए इस पात्र में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है. तांबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए इससे शरीर को नुकसान होता है।


पीतल :-

पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती। पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल ७ प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं।


लोहा :-

लोहे के बर्तन में बने भोजन खाने से शरीर की शक्ति बढती है, लोह्तत्व शरीर में जरूरी पोषक तत्वों को बढ़ता है। लोहा कई रोग को खत्म करता है, पांडू रोग मिटाता है, शरीर में सूजन और पीलापन नहीं आने देता, कामला रोग को खत्म करता है, और पीलिया रोग को दूर रखता है. लेकिन लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से बुद्धि कम होती है और दिमाग का नाश होता है। लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है।


स्टील :-

स्टील के बर्तन नुक्सान दायक नहीं होते क्योंकि ये ना ही गर्म से क्रिया करते है और ना ही अम्ल से. इसलिए नुक्सान नहीं होता है. इसमें खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं पहुँचता तो नुक्सान भी नहीं पहुँचता।


एलुमिनियम :-

एल्युमिनिय बोक्साईट का बना होता है। इसमें बने खाने से शरीर को सिर्फ नुक्सान होता है। यह आयरन और कैल्शियम को सोखता है इसलिए इससे बने पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे हड्डियां कमजोर होती है. मानसिक बीमारियाँ होती है, लीवर और नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचती है। उसके साथ साथ किडनी फेल होना, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियाँ होती है। एलुमिनियम के प्रेशर कूकर से खाना बनाने से 87 प्रतिशत पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं।


मिट्टी :-
मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखते थे। इस बात को अब आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है कि मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से शरीर के कई तरह के रोग ठीक होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, अगर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिए। भले ही मिट्टी के बर्तनों में खाना बनने में वक़्त थोड़ा ज्यादा लगता है, लेकिन इससे सेहत को पूरा लाभ मिलता है। दूध और दूध से बने उत्पादों के लिए सबसे उपयुक्त हैमिट्टी के बर्तन। मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पूरे १०० प्रतिशत पोषक तत्व मिलते हैं। और यदि मिट्टी के बर्तन में खाना खाया जाए तो उसका अलग से स्वाद भी आता है।


पानी पीने के पात्र के विषय में 'भावप्रकाश ग्रंथ' में लिखा है....


जलपात्रं तु ताम्रस्य तदभावे मृदो हितम्।
पवित्रं शीतलं पात्रं रचितं स्फटिकेन यत्।
काचेन रचितं तद्वत् वैङूर्यसम्भवम्।

(भावप्रकाश, पूर्वखंडः4)


अर्थात् - पानी पीने के लिए ताँबा, स्फटिक अथवा काँच-पात्र का उपयोग करना चाहिए। सम्भव हो तो वैङूर्यरत्नजड़ित पात्र का उपयोग करें। इनके अभाव में मिट्टी के जलपात्र पवित्र व शीतल होते हैं। टूटे-फूटे बर्तन से अथवा अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए।



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