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श्री साईं बाबा चालीसा



श्री साईं बाबा चालीसा


श्री साईं चालीसा का महत्व

साईं बाबा बेहद सच्चे और सरल थे और वह अपने भक्तों में भी वैसे ही निश्छलता देखना चाहते हैं। सीधे, सरल और सादगी के साथ उनकी पूजा करना ही उनके लिए काफी होता है।
श्री साईं चालीसा का पाठ करने पर समस्त प्रकार के दुखों से छुटकारा मिल सकता है। साईं की पूजा करने के लिए जरूरी है कि आपका मन सच्चा हो। सच्चे मन से साईं की चालीसा पढ़ने भर से आपके बिगड़े काम पूरे हो सकते हैं। तो आइए, श्री साईं चालीसा का पाठ करें।

श्री साईं बाबा चालीसा

॥ चौपाई ॥

पहले साई के चरणों में,

अपना शीश नमाऊं मैं।

कैसे शिरडी साई आए,

सारा हाल सुनाऊं मैं॥


कौन है माता, पिता कौन है,

ये न किसी ने भी जाना।

कहां जन्म साई ने धारा,

प्रश्न पहेली रहा बना॥


कोई कहे अयोध्या के,

ये रामचन्द्र भगवान हैं।

कोई कहता साई बाबा,

पवन पुत्र हनुमान हैं॥


कोई कहता मंगल मूर्ति,

श्री गजानंद हैं साई।

कोई कहता गोकुल मोहन,

देवकी नन्दन हैं साई॥

शंकर समझे भक्त कई तो,

बाबा को भजते रहते।

कोई कह अवतार दत्त का,

पूजा साई की करते॥

कुछ भी मानो उनको तुम,

पर साई हैं सच्चे भगवान।

बड़े दयालु दीनबन्धु,

कितनों को दिया जीवन दान॥

कई वर्ष पहले की घटना,

तुम्हें सुनाऊंगा मैं बात।

किसी भाग्यशाली की,

शिरडी में आई थी बारात॥

आया साथ उसी के था,

बालक एक बहुत सुन्दर।

आया, आकर वहीं बस गया,

पावन शिरडी किया नगर॥

कई दिनों तक भटकता,

भिक्षा माँग उसने दर-दर।

और दिखाई ऐसी लीला,

जग में जो हो गई अमर॥

जैसे-जैसे अमर उमर बढ़ी,

बढ़ती ही वैसे गई शान।

घर-घर होने लगा नगर में,

साई बाबा का गुणगान ॥

दिग्-दिगन्त में लगा गूंजने,

फिर तो साईंजी का नाम।

दीन-दुखी की रक्षा करना,

यही रहा बाबा का काम॥

बाबा के चरणों में जाकर,

जो कहता मैं हूं निर्धन।

दया उसी पर होती उनकी,

खुल जाते दुःख के बंधन॥

कभी किसी ने मांगी भिक्षा,

दो बाबा मुझको संतान।

एवं अस्तु तब कहकर साई,

देते थे उसको वरदान॥

स्वयं दुःखी बाबा हो जाते,

दीन-दुःखी जन का लख हाल।

अन्तःकरण श्री साई का,

सागर जैसा रहा विशाल॥

भक्त एक मद्रासी आया,

घर का बहुत ब़ड़ा धनवान।

माल खजाना बेहद उसका,

केवल नहीं रही संतान॥

लगा मनाने साईनाथ को,

बाबा मुझ पर दया करो।

झंझा से झंकृत नैया को,

तुम्हीं मेरी पार करो॥

कुलदीपक के बिना अंधेरा,

छाया हुआ घर में मेरे।

इसलिए आया हूँ बाबा,

होकर शरणागत तेरे॥

कुलदीपक के अभाव में,

व्यर्थ है दौलत की माया।

आज भिखारी बनकर बाबा,

शरण तुम्हारी मैं आया॥

दे दो मुझको पुत्र-दान,

मैं ऋणी रहूंगा जीवन भर।

और किसी की आशा न मुझको,

सिर्फ भरोसा है तुम पर॥

अनुनय-विनय बहुत की उसने,

चरणों में धर के शीश।

तब प्रसन्न होकर बाबा ने,

दिया भक्त को यह आशीश॥

“अल्ला भला करेगा तेरा”,

पुत्र जन्म हो तेरे घर।

कृपा रहेगी तुझ पर उसकी,

और तेरे उस बालक पर॥

अब तक नहीं किसी ने पाया,

साई की कृपा का पार।

पुत्र रत्न दे मद्रासी को,

धन्य किया उसका संसार॥

तन-मन से जो भजे उसी का,

जग में होता है उद्धार।

सांच को आंच नहीं हैं कोई,

सदा झूठ की होती हार॥

मैं हूं सदा सहारे उसके,

सदा रहूँगा उसका दास।

साई जैसा प्रभु मिला है,

इतनी ही कम है क्या आस॥


मेरा भी दिन था एक ऐसा,

मिलती नहीं मुझे रोटी।

तन पर कप़ड़ा दूर रहा था,

शेष रही नन्हीं सी लंगोटी॥


सरिता सन्मुख होने पर भी,

मैं प्यासा का प्यासा था।

दुर्दिन मेरा मेरे ऊपर,

दावाग्नी बरसाता था॥


धरती के अतिरिक्त जगत में,

मेरा कुछ अवलम्ब न था।

बना भिखारी मैं दुनिया में,

दर-दर ठोकर खाता था॥


ऐसे में एक मित्र मिला जो,

परम भक्त साई का था।

जंजालों से मुक्त मगर,

जगती में वह भी मुझसा था॥


बाबा के दर्शन की खातिर,

मिल दोनों ने किया विचार।

साई जैसे दया मूर्ति के,

दर्शन को हो गए तैयार॥


पावन शिरडी नगर में जाकर,

देख मतवाली मूरति।

धन्य जन्म हो गया कि हमने,

जब देखी साई की सूरति॥


जब से किए हैं दर्शन हमने,

दुःख सारा काफूर हो गया।

संकट सारे मिटै और,

विपदाओं का अन्त हो गया॥


मान और सम्मान मिला,

भिक्षा में हमको बाबा से।

प्रतिबिम्‍बित हो उठे जगत में,

हम साई की आभा से॥


बाबा ने सन्मान दिया है,

मान दिया इस जीवन में।

इसका ही संबल ले मैं,

हंसता जाऊंगा जीवन में॥


साई की लीला का मेरे,

मन पर ऐसा असर हुआ।

लगता जगती के कण-कण में,

जैसे हो वह भरा हुआ॥


“काशीराम” बाबा का भक्त,

शिरडी में रहता था।

मैं साई का साई मेरा,

वह दुनिया से कहता था॥


सीकर स्वयं वस्त्र बेचता,

ग्राम-नगर बाजारों में।

झंकृत उसकी हृदय तंत्री थी,

साई की झंकारों में॥


स्तब्ध निशा थी, थे सोय,

रजनी आंचल में चाँद सितारे।

नहीं सूझता रहा हाथ को,

हाथ तिमिर के मारे॥


वस्त्र बेचकर लौट रहा था,

हाय! हाट से काशी।

विचित्र ब़ड़ा संयोग कि उस दिन,

आता था एकाकी॥


घेर राह में ख़ड़े हो गए,

उसे कुटिल अन्यायी।

मारो काटो लूटो इसकी ही,

ध्वनि प़ड़ी सुनाई॥


लूट पीटकर उसे वहाँ से,

कुटिल गए चम्पत हो।

आघातों में मर्माहत हो,

उसने दी संज्ञा खो ॥


बहुत देर तक प़ड़ा रह वह,

वहीं उसी हालत में।

जाने कब कुछ होश हो उठा,

वहीं उसकी पलक में॥


अनजाने ही उसके मुंह से,

निकल प़ड़ा था साई।

जिसकी प्रतिध्वनि शिरडी में,

बाबा को प़ड़ी सुनाई॥


क्षुब्ध हो उठा मानस उनका,

बाबा गए विकल हो।

लगता जैसे घटना सारी,

घटी उन्हीं के सन्मुख हो॥


उन्मादी से इ़धर-उ़धर तब,

बाबा लेगे भटकने।

सन्मुख चीजें जो भी आई,

उनको लगने पटकने॥


और धधकते अंगारों में,

बाबा ने अपना कर डाला।

हुए सशंकित सभी वहाँ,

लख ताण्डवनृत्य निराला॥


समझ गए सब लोग,

कि कोई भक्त प़ड़ा संकट में।

क्षुभित ख़ड़े थे सभी वहाँ,

पर प़ड़े हुए विस्मय में॥


उसे बचाने की ही खातिर,

बाबा आज विकल है।

उसकी ही पी़ड़ा से पीडित,

उनकी अन्तःस्थल है॥


इतने में ही विविध ने अपनी,

विचित्रता दिखलाई।

लख कर जिसको जनता की,

श्रद्धा सरिता लहराई॥


लेकर संज्ञाहीन भक्त को,

गाड़ी एक वहाँ आई।

सन्मुख अपने देख भक्त को,

साई की आंखें भर आई॥



शांत, धीर, गंभीर, सिन्धु सा,

बाबा का अन्तःस्थल।

आज न जाने क्यों रह-रहकर,

हो जाता था चंचल ॥



आज दया की मूर्ति स्वयं था,

बना हुआ उपचारी।

और भक्त के लिए आज था,

देव बना प्रतिहारी॥


आज भक्ति की विषम परीक्षा में,

सफल हुआ था काशी।

उसके ही दर्शन की खातिर थे,

उमड़े नगर-निवासी॥


जब भी और जहां भी कोई,

भक्त प़ड़े संकट में।

उसकी रक्षा करने बाबा,

आते हैं पलभर में॥


युग-युग का है सत्य यह,

नहीं कोई नई कहानी।

आपतग्रस्त भक्त जब होता,

जाते खुद अन्तर्यामी॥


भेद-भाव से परे पुजारी,

मानवता के थे साई।

जितने प्यारे हिन्दु-मुस्लिम,

उतने ही थे सिक्ख ईसाई॥


भेद-भाव मन्दिर-मस्जिद का,

तोड़-फोड़ बाबा ने डाला।

राह रहीम सभी उनके थे,

कृष्ण करीम अल्लाताला॥


घण्टे की प्रतिध्वनि से गूंजा,

मस्जिद का कोना-कोना।

मिले परस्पर हिन्दु-मुस्लिम,

प्यार बढ़ा दिन-दिन दूना॥


चमत्कार था कितना सुन्दर,

परिचय इस काया ने दी।

और नीम कडुवाहट में भी,

मिठास बाबा ने भर दी॥


सब को स्नेह दिया साई ने,

सबको संतुल प्यार किया।

जो कुछ जिसने भी चाहा,

बाबा ने उसको वही दिया॥


ऐसे स्नेहशील भाजन का,

नाम सदा जो जपा करे।

पर्वत जैसा दुःख न क्यों हो,

पलभर में वह दूर टरे॥


साई जैसा दाता हम,

अरे नहीं देखा कोई।

जिसके केवल दर्शन से ही,

सारी विपदा दूर गई॥


तन में साई, मन में साई,

साई-साई भजा करो।

अपने तन की सुधि-बुधि खोकर,

सुधि उसकी तुम किया करो॥


जब तू अपनी सुधि तज,

बाबा की सुधि किया करेगा।

और रात-दिन बाबा-बाबा,

ही तू रटा करेगा॥

तो बाबा को अरे ! विवश हो,

सुधि तेरी लेनी ही होगी।

तेरी हर इच्छा बाबा को,

पूरी ही करनी होगी॥


जंगल, जगंल भटक न पागल,

और ढूंढ़ने बाबा को।

एक जगह केवल शिरडी में,

तू पाएगा बाबा को॥


धन्य जगत में प्राणी है वह,

जिसने बाबा को पाया।

दुःख में, सुख में प्रहर आठ हो,

साई का ही गुण गाया॥


गिरे संकटों के पर्वत,

चाहे बिजली ही टूट पड़े।

साई का ले नाम सदा तुम,

सन्मुख सब के रहो अड़े॥


इस बूढ़े की सुन करामत,

तुम हो जाओगे हैरान।

दंग रह गए सुनकर जिसको,

जाने कितने चतुर सुजान॥


एक बार शिरडी में साधु,

ढ़ोंगी था कोई आया।

भोली-भाली नगर-निवासी,

जनता को था भरमाया॥


जड़ी-बूटियां उन्हें दिखाकर,

करने लगा वह भाषण।

कहने लगा सुनो श्रोतागण,

घर मेरा है वृन्दावन॥


औषधि मेरे पास एक है,

और अजब इसमें शक्ति।

इसके सेवन करने से ही,

हो जाती दुःख से मुक्ति॥


अगर मुक्त होना चाहो,

तुम संकट से बीमारी से।

तो है मेरा नम्र निवेदन,

हर नर से, हर नारी से॥


लो खरीद तुम इसको,

इसकी सेवन विधियां हैं न्यारी।

यद्यपि तुच्छ वस्तु है यह,

गुण उसके हैं अति भारी॥


जो है संतति हीन यहां यदि,

मेरी औषधि को खाए।

पुत्र-रत्न हो प्राप्त,

अरे वह मुंह मांगा फल पाए॥


औषधि मेरी जो न खरीदे,

जीवन भर पछताएगा।

मुझ जैसा प्राणी शायद ही,

अरे यहां आ पाएगा॥


दुनिया दो दिनों का मेला है,

मौज शौक तुम भी कर लो।

अगर इससे मिलता है,

सब कुछ, तुम भी इसको ले लो॥


हैरानी बढ़ती जनता की,

लख इसकी कारस्तानी।

प्रमुदित वह भी मन- ही-मन था,

लख लोगों की नादानी॥


खबर सुनाने बाबा को यह,

गया दौड़कर सेवक एक।

सुनकर भृकुटी तनी और,

विस्मरण हो गया सभी विवेक॥


हुक्म दिया सेवक को,

सत्वर पकड़ दुष्ट को लाओ।

या शिरडी की सीमा से,

कपटी को दूर भगाओ॥


मेरे रहते भोली-भाली,

शिरडी की जनता को।

कौन नीच ऐसा जो,

साहस करता है छलने को॥


पलभर में ऐसे ढोंगी,

कपटी नीच लुटेरे को।

महानाश के महागर्त में पहुँचा दूँ,

जीवन भर को॥


तनिक मिला आभास मदारी,

क्रूर, कुटिल अन्यायी को।

काल नाचता है अब सिर पर,

गुस्सा आया साई को॥


पलभर में सब खेल बंद कर,

भागा सिर पर रखकर पैर।

सोच रहा था मन ही मन,

भगवान नहीं है अब खैर॥


सच है साई जैसा दानी,

मिल न सकेगा जग में।

अंश ईश का साई बाबा,

उन्हें न कुछ भी मुश्किल जग में॥


स्नेह, शील, सौजन्य आदि का,

आभूषण धारण कर।

बढ़ता इस दुनिया में जो भी,

मानव सेवा के पथ पर॥


वही जीत लेता है जगती के,

जन जन का अन्तःस्थल।

उसकी एक उदासी ही,

जग को कर देती है विह्वल॥


जब-जब जग में भार पाप का,

बढ़-बढ़ ही जाता है।

उसे मिटाने की ही खातिर,

अवतारी ही आता है॥


पाप और अन्याय सभी कुछ,

इस जगती का हर के।

दूर भगा देता दुनिया के,

दानव को क्षण भर के॥


स्नेह सुधा की धार बरसने,

लगती है इस दुनिया में।

गले परस्पर मिलने लगते,

हैं जन-जन आपस में॥


ऐसे अवतारी साई,

मृत्युलोक में आकर।

समता का यह पाठ पढ़ाया,

सबको अपना आप मिटाकर॥


नाम द्वारका मस्जिद का,

रखा शिरडी में साई ने।

दाप, ताप, संताप मिटाया,

जो कुछ आया साई ने॥


सदा याद में मस्त राम की,

बैठे रहते थे साई।

पहर आठ ही राम नाम को,

भजते रहते थे साई॥

सूखी-रूखी ताजी बासी,

चाहे या होवे पकवान।

सौदा प्यार के भूखे साई की,

खातिर थे सभी समान॥


स्नेह और श्रद्धा से अपनी,

जन जो कुछ दे जाते थे।

बड़े चाव से उस भोजन को,

बाबा पावन करते थे॥


कभी-कभी मन बहलाने को,

बाबा बाग में जाते थे।

प्रमुदित मन में निरख प्रकृति,

छटा को वे होते थे॥


रंग-बिरंगे पुष्प बाग के,

मंद-मंद हिल-डुल करके।

बीहड़ वीराने मन में भी,

स्नेह सलिल भर जाते थे॥


ऐसी समुधुर बेला में भी,

दुख आपात, विपदा के मारे।

अपने मन की व्यथा सुनाने,

जन रहते बाबा को घेरे॥


सुनकर जिनकी करूणकथा को,

नयन कमल भर आते थे।

दे विभूति हर व्यथा, शांति,

उनके उर में भर देते थे॥


जाने क्या अद्भुत शिक्त,

उस विभूति में होती थी।

जो धारण करते मस्तक पर,

दुःख सारा हर लेती थी॥


धन्य मनुज वे साक्षात् दर्शन,

जो बाबा साई के पाए।

धन्य कमल कर उनके जिनसे,

चरण-कमल वे परसाए॥


काश निर्भय तुमको भी,

साक्षात् साई मिल जाता।

वर्षों से उजड़ा चमन अपना,

फिर से आज खिल जाता॥


गर पकड़ता मैं चरण श्री के,

नहीं छोड़ता उम्रभर।

मना लेता मैं जरूर उनको,

गर रूठते साई मुझ पर॥


Shri Saibaba Shirdi Madhyanh- Aarti Darshan

.
     
 *!! ॐ श्री साईं शिर्डीनाथायनमः !!*


   🙏 *माध्यान्ह आरती* 🙏 
          पंचारती अभंग*
घेवुनिया पंचाआरती, करू बाबाची आरती करू साईची आरती बाबांची आरती ऊठा ऊठा हाे बांधव,आेवाळु हा रघुमाधव
ll2ll करूनिया स्थीर मन पाहु गंभीर हे ध्यान साईचे ही ध्यान पाहु गंभीर हे ध्यान कृष्णनाथ दत्त साई. जड़ो चित्त तुझ पायीll

           *आरती साईबाबा*

आरती साईबाबा । सौख्यदातार जीवा।
चरणरजातली । द्यावा दासा विसावा,  भक्ता विसावा ।। आ०।।ध्रु ०।।
जाळुनियां अनंग। स्वस्वरूपी राहेदंग ।
मुमुक्षूजनां दावी । निज डोळा श्रीरंग ।। आ०।। १ ।।
जयामनी जैसा भाव । तया तैसा अनुभव ।
दाविसी दयाघना । ऐसी तुझीही माव ।। आ०।। २ ।।
तुमचे नाम ध्याता । हरे संस्कृती व्यथा ।
अगाध तव करणी ।  मार्ग दाविसी अनाथा ।। आ०।। ३ ।।
कलियुगी अवतार । सगुण परब्रह्मः साचार ।
अवतीर्ण झालासे । स्वामी दत्त दिगंबर ।। द०।। आ०।। ४ ।।
आठा दिवसा गुरुवारी । भक्त करिती वारी ।
प्रभुपद पहावया । भवभय निवारी ।। आ०।। ५ ।।
माझा निजद्रव्यठेवा । तव चरणरज सेवा ।
मागणे हेचि आता । तुम्हा देवाधिदेवा ।। आ०।। ६ ।।
इच्छित दिन चातक। निर्मल तोय निजसुख ।
पाजावे माधवा या । सांभाळ आपुली भाक ।। आ०।। ७ ।। &

                *जय देव जय देव*                

जय देवा जय देवा दत्ता अवधूता! साई अवधूता!जोडुनी कर तव चरणी ठेवतो माथा!! जय देवा जय देवा
अवतरसीं तु येता धर्मातें ग्लानी 
नास्तिकानांही तु लाविसी निजभजनी
दाविसी नानालिला असंख्या रुपानी 
हरिसी दिनांचे तू संकट दिनरजनी.. आरती.. 
यवनस्वरुपि एक्या दर्शन त्वां दिधले
संशय निरसुनिया तदद्वैता घालविले 
गोपिचंदा मंदा त्वाची उद्धरिले 
मोमीन वंशी जन्मुनी लोका तारियले 
.. जय... 
भेदन तत्वी हिंदू यवनाची काही 
दावायासी झाला पुनरपी नरदेही 
पाहासी प्रेमाने तु हिंदू.. यवनाहीं 
दाविसी आत्मतवाने व्यापक हा साई 
... जय... 
देवा साईनाथा त्वत्पदनत भावे 
परमाया मोहित जनमोचनी झणि व्हावे. 
त्वत्कृपये सकलांचे संकट निरसावे 
देशिल तरी तरी दे त्वध्यश कृष्णाने गावे... जय..

               *अभंग*

शिर्डी माझे पंढरपुर । साईबाबा रमावर ।। १ ।।
शुद्ध भक्ती चंद्रभागा । भाव पुंडलिक जागा ।। २ ।।
या हो या हो अवघे जन । करा बाबांसी वंदन ।। ३ ।।
गणु म्हणे बाबा साई । धाव पाव माझे आई ।। ४ ।।

              *नमन*

       घालीन लोटांगण,  वंदिन चरण,
       डोळ्यांनी पाहीन रूप तुझे ।।
      प्रेमे आलिंगन,  आनंदे पुजिन,
      भावे ओवाळिन म्हणे नमः ।। १ ।।
      त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
      त्वमेव बंधूश्च सखा त्वमेव ।
      त्वमेव विद्या द्रविण त्वमेव,
      त्वमेव सर्व ममदेव देव ।। २ ।।
      कायेन वाचा मनसैन्द्रीयेवा,
      बुध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावा ।
      करोमी यदन्यंसकल परस्मै,
      नारायणाइति समर्पयामी ।। ३ ।।
      अच्युतम केशवम् रामनारायणं,
      कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरी ।
      श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभम,
      जानकीनायकम् रामचंद्र भजे ।। ४ ।।

              *नामस्मरण*

     हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
     हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।

            *पुषपांजली (मंत्र पुष्पम)*

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्न ।
ते ह नाकं महिमानः सचंत यत्र पूर्वे साध्या संति देवा: ।।
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्यसाहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मे कामान्कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो दधातु।
कुबेराय वैश्रवणाय । महाराजा नमः । ॐ स्वस्ति ।
साम्राज्य्मं  भौज्य्मं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्य
राज्य माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी
स्यात्सार्वभौमः सार्वायूष आंतादापरार्धात्
पृथिव्यैसमुद्रपर्यताया एकराळीती ।
तदप्येष श्लोकोsभिगीतो मरूतः परिवेष्टारो
मरूत्तस्यावसनगृहे आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति ।।

।। श्री नारायण वासुदेवाय सचिदानंद सदगुरु साईनाथ महाराज की जय ।।
                   
              *नमस्काराष्टक*

अनंता तुला ते कसे रे स्तवावे । अनंता तुला ते कसे रे नमावे ।।
अनंत मुखांचा  शिणे शेष गाथा । नमस्कार साष्टांग श्रीसाईनाथा ।। १ ।।
स्मरावे मनी त्वत्पदा नित्य भावे । उरावे तरी भक्तिसाठी स्वभावे ।।
तरावे जगा तारुनी मायताता । नमस्कार साष्टांग श्री साईनाथा ।। २ ।।
वसे जो सदा दावया संत लीला ।  दिसे अज्ञ लोकापरी जो जनाला ।।
परी अंतरि ज्ञान कैवल्यदाता । नमस्कार साष्टांग श्री साईनाथा ।। ३ ।।
बरा लाधला जन्म हां मानवाचा । नरा सार्थका साधनीभुत साचा ।।
धरु साईप्रेमा गळाया अहंता ।  नमस्कार साष्टांग श्री साईनाथा ।। ४ ।।
धरावे करी सान अल्पज्ञ बाला । करावे आम्हा धन्य चुंबोनि घाला ।।
मुखी घाल प्रेमे खरा ग्रास आता । नमस्कार साष्टांग श्री साईनाथा ।। ५ ।।
सुरादिक ज्यांच्या पदा वंदिताति । सुरादिक ज्यांचे समानत्व देती ।।
प्रयगादि तीर्थेपदि नम्र होता । नमस्कार साष्टांग श्री साईनाथा ।। ६ ।।
तुझ्या ज्या पदा पाहता गोपबाली । सदा रंगली चित्स्वरुपि मिळाली ।।
करी रासक्रीड़ा सवे कृष्णनाथा । नमस्कार साष्टांग श्री साईनाथा ।। ७ ।।
तुला मागतो मागणे एक द्यावे । करा जोडितो दिन अत्यंत भावे ।।
भवि मोहनीराज हा तारी आता । नमस्कार साष्टांग श्री साईनाथा ।। ८ ।।

             *ऐसा येई बा*
               
ऐसा येई बा । साई दिगंबरा । अक्षयरूप अवतारा। सर्वही व्यापक तू ।
श्रुतिसारा । अनुसया त्रिकुमारा । बाबा येई बा ।। ध्रु ।।
काशी स्नान जप, प्रतिदिवशी । कोल्हापुर भिक्षेसि । निर्मल नदी तुंगा,
जल प्राशी । निद्रा माहुर देशी ।। ऐसा येईबा ।। १ ।।
झोळी लोंबतसे वाम करी । त्रिशुल डमरू धारी । भक्ता वरद सदा सुखकारी ।
देशील मुक्ति चारि ।। ऐसा येईबा ।। २ ।।
पायी पादुका । जपमाला कमंडलू मृगछाला । धारण करिशि बा ।
नागजटा मुगट शोभतो माथा ।। ऐसा येईबा ।। ३ ।।
तत्पर तुझ्या या  जे ध्यानी । अक्षय त्यांचे सदानि । लक्ष्मी वास करी दिनरजनी ।
रक्षिसि संकट वारुनि ।। ऐसा येईबा ।। ४ ।।
या परीध्यान तुझे गुरुराया । दृश्य करी नयना या। पूर्णा नंद सूखे ही काया ।
लाविसि हरीगुण गाया ।। ऐसा येईबा ।। ५ ।।
                       
                     *श्रीसाईनाथमहिम्नस्त्रोत्रम*
     
सदा सत्स्वरूपं  चिदानंदकंदं,  जगत्समभवस्थानसंहारहेतुम ।    
स्वभक्तेछयामानुशं दर्शयन्तः,  नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। १ ।।
भवध्वांतविध्वंसमर्तांडमिड्य, मनोवागतीतं मुनीर्ध्यानग्म्यम् ।       
जगदव्यापकं निर्मलं निर्गुणं त्वा, नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। २ ।।
भवांभोधीमग्नादिर्तानां जनानां, स्वपादाश्रितानां स्वभक्तिप्रियाणाम् ।        
समुद्धारणार्थ कल्लो संभवंतं, नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। ३ ।।      
सदा निंबवृक्ष्यस मूलाधिवसात्सुधास्त्राविणं तिक्तमप्यप्रियं तम् ।       
तरुं कल्पवृक्षाधिकं साधयंतं, नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। ४ ।।      
सदा कल्पवृक्ष्यस तस्यधिमुले भवद्भावबुद्ध्या सपर्यादिसेवाम् ।
नृणा कुर्वतां भुक्तिमुक्तिप्रदं तं, नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। ५ ।।      
अनेकाश्रुतातर्क्यलीला  विलासै: समाविश्र्कृतेशानभास्वत्प्रभावं ।
अहंभावहीनं प्रसन्नात्मभावं, नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। ६ ।।
सतां:विश्रमाराममेवाभिरामं सदा सज्जनै: संस्तुतं सन्नमद्भि: ।
जनामोददं भक्तभद्रप्रदं तं, नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। ७ ।।
अजन्माद्यमेकं परं ब्रम्ह साक्षात्स्व  संभवं-राममेवावतीर्णम् ।         
भवद्दर्शनात्स्यपुनीत: प्रभो हं, नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। ८ ।।
श्री साईंशकृपानिधेखिलनृणां  सर्वार्थसिद्धिप्रद ।
युष्मत्पादरज:प्रभावमतुलं धातापि वक्ताक्षम: ।
सद्भ्क्त्या शरणं कृतांजलिपुट: संप्रापितोस्मि प्रभो,
श्रीमत्साईपरेशपादकमलान्यानछरणयं मम ।। ९ ।।
साईरूपधरराघवोत्तमं,  भक्तकामविबुधद्रुमं प्रभुम ।
माययोपहतचित्तशुद्धये,  चिंतयाम्यहमहर्निशं मुदा ।। १० ।।
शरत्सुधांशुप्रतिमंप्रकाश,  कृपातपात्रं तव साईनाथ ।
त्वदीयपादाब्जसमाश्रितानां स्वच्छयया तापमपाकरोतु ।। ११ ।।
उपसनादैवतसाईनाथ, स्तवैमर्यो पासनिना स्तुतस्वम ।
रमेन्मनो मे तव पाद्युग्मे , भ्रुङ्गो, यथाब्जे मकरंदलुब्ध : ।। १२ ।।   
अनेकजन्मार्जितपापसंक्षयो, भवेद्भावत्पादसरोजदर्शनात।
क्षमस्व सर्वानपराधपुंजकान्प्रसीद साईश गुरो दयानिधे ।। १३ ।।                  
श्री साईनाथचरणांमृतपूतचित्तास्तत्पादसेवानरता: सततं च भक्त्या ।
संसारजन्यदुरितौधविनिर्गतास्ते कवैल्याधाम परमं  समवाप्नुवन्ति ।। १४ ।।
स्तोत्रमेतत्पठेद्भक्त्या यो नरस्तन्मना: सदा ।
सदगुरो: साइनाथस्य कृपापात्रं  भवेद ध्रुवम ।। १५ ।।       
                                      
               *प्रार्थना*

करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वाsपराधम्
विदितमविदितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्रीप्रभो साईनाथ

।। श्री सच्चिदानंद सदगुरु साईनाथ महाराज की जय ।।येओ थैमान
 
*।। राजाधिराज योगिराज परब्रह्म  साईनाथ महाराज की जय ।।*
!! ॐ साईंराम !!
🙏💐🙏
समस्त साईं परिवार के अनंतकोटी प्रणाम साईंचरणकमल मे समर्पित........
🙏💐🙏


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ओम साईं राम 
जो भी साईबाबा के भक्त श्रीसाईबाबा संस्थान शिर्डी मैं ऑनलाइन डोनेट  करना चाहते हैं 
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श्री साईबाबा संस्थान ट्रस्ट शिरडी ऑफिशियल वेबसाइट है 

                                   

Saibaba of Shirdi Aarti Shirdi majhe pandharpur ( Kakad Aarti )

*!! 🕉️ साई राम !!*
*श्री साईबाबा संस्थान विश्वस्त व्यवस्था,शिर्डी*
 *आरती :- शिरड़ी माझे पंढरपूर आरती*
 *मंगलवार दिनांक ०४ एप्रिल २०२३*                              
*!! 🕉️ Sai Ram !!*
*Shri Saibaba Sansthan Trust, Shirdi*
*Aarti* :- *Shirdi Majhe pandharpur Aarti*
*Tuesday 04 April 2023*


साईं बाबा काकड़ आरती
(१) जोडूनियां कर (भूपाळी)


जोडूनियां कर चरणी ठेविला माथा ।
परिसावी विनंती माझी सद्गुरूनाथा ॥१॥


असो नसो भाव आलों तुझिया ठाया।
कृपादृष्टी पाहें मजकडे सद्गुरूराया ॥२॥


अखंडित असावें ऐसे वाटतें पायीं ।
सांडूनी संकोच ठाव थोडासा देई ॥3॥


तुका म्हणे देवा माझी वेडीवांकुडी ।
नामें भवपाश हातीं आपुल्या तोडी ॥४॥
2. उठा पांडुरंगा (भूपाळी)


उठा पांडुरंगा आता प्रभातसमयो पातला
वैष्णवांचा मेळा गरूडपारी दाटला ॥1॥


गरूडपारापासुनी महाद्वारापर्यंत ।
सुरवरांची मांदी उभी जोडूनिया हात ॥2॥


शुक सनकादिक नारद-तुंबर भक्तांच्या कोटी।
त्रिशूल डमरू घेऊनि उभा गिरिजेचा पती ॥3॥


कलीयुगीचा भक्त नामा उभा कीर्तनी ।
पाठीमागे उभी डोळा लावुनियां जनी ॥4॥
(३) उठा उठा (भूपाळी)


उठा उठा श्री साईनाथ गुरू चरणकमल दावा। .
आधिव्याधि भवताप वारुनी तारा जडजीवा ॥ध्रु. ।।


गेली तुम्हां सोडूनियां भवतमरजनी विलया ।
परि ही अज्ञानासी तुमची भुलवि योगमाया ।
शक्ति न आम्हां यत्किंचितही तिजला साराया।
तुम्हीच तीतें सारुनि दावा मुख जन ताराया ।। चा० ।।


भो साईनाथ महाराज भवतिमिरनाशक रवी।
अज्ञानी आम्ही किती तव वर्णावी थोरवी ।
ती वर्णितां भागले बहुवदनि शेष विधि कवी ।।चा०।।


सकृप होउनि महिमा तुमचा तुम्हीच वदवावा ।।
आधि० ।। उठा० ।।१।।


भक्त मनीं सद्भाव धरूनि जे तुम्हां अनुसरले ।
घ्यायास्तव ते दर्शन तुमचें द्वारिं उभे ठेले ।
ध्यानस्था तुम्हांस पाहुनी मन अमुचें धाले ।
परि त्वद्वचनामृत प्राशायातें आतुर झाले ।।चा०।।


उघडूनी नेत्रकमला दीनबंधु रमाकांता।
पाहिबा कृपादृष्टी बालका जशी माता ।
रंजवी मधुरवाणी हरी ताप साईनाथ ।।चा० ।।


आम्हीच अपुले काजास्तव तुज कष्टवितो देवा ।
सहन करीशी ऐकुनी द्यावी भेट कृष्ण धावां ।।
उठा उठा० ।। आधिव्याधि० ॥२॥
(4) दर्शन द्या (भूपाळी)


उठा पांडुरंगा आतां दर्शन द्या सकळां ।
झाला अरूणोदय सरली निद्रेची वेळा ॥१॥


संत साधू मुनी अवघे झालेती गोळा ।
सोडा शेजे सुखे आतां बघुद्या मुखकमळा ।।२।।


रंगमंडपी महाद्वारी झालीसे दाटी ।
मन उतावीळ रूप पहावया दृष्टी ||३||


राही रखुमाबाई तुम्हां येऊं द्या दया ।
शेजे हालवूनी जागे करा देवराया ।।४॥


गरूड हनुमंत उभे पाहती वाट ।
स्वर्गीचे सुरवर घेऊनि आले बोभाट ।। ५ ।।


झाले मुक्तद्वार लाभ झाला रोकडा ।
विष्णुदास नामा उभा घेऊनि कांकडा ।।६।।
(५) पंचारती (अभंग)


घेउनियां पंचारती । करूं बाबांसी आरती ।।
करूं साईसी० ॥१॥
उठा उठा हो बांधव । ओंवाळू हा रमाधव ॥
साई र० ॥ओं० ॥२॥
करूनिया स्थिर मन । पाहूं गंभीर हे ध्यान ।
साईंचे हे० ।।पा० ॥३॥
कृष्णनाथा दत्तसाई । जडो चित्त तुझे पायी ।।
साई तु०॥ जडो० ॥४॥
(६) चिन्मयरूप काकड आरती


काकड आरती करीतों साईनाथ देवा ।
चिन्मयरूप दाखवीं घेऊनि बालक-लघुसेवा ।।धु० ॥


काम क्रोध मद मत्सर आटुनी कांकडा केला।
वैराग्याचे तूप घालुनी मी तो भिजविला ।
साईनाथगुरूभक्तिज्वलनें तो मी पेटविला ।
तवृत्ती जाळूनी गुरूनें प्रकाश पाडीला ।
द्वैत-तमा नासूनी मिळवी तत्स्वरूपी जीवा । ॥ चि० ॥१॥


भू-खेचर व्यापूनी अवघे हृत्कमलीं राहसी ।
तोचि दत्तदेव शिरडी राहुनी पावसी ।
राहनी येथे अन्यत्रहित भक्तांस्तव धावसी।
निरसुनिया संकटा दासा अनुभव दाविसी ।
न कळे त्वल्लीलाही कोण्या देवा वा मानवा ।। ॥ चि० ॥२॥


त्वद्यशदुदुंभीने सारे अंबर हे कोंदलें ।
सगुण मूर्ति पाहण्या आतुर जन शिरडी आले ।
प्राशुनी त्वद्वचनामृत अमुचे देहभान हरपलें ।
सोडूनियां दुरभिमान मानस त्वच्चरणीं वाहिले ।
कृपा करूनियां साईमाउले दास पदरी घ्यावा ।। ॥ चि० ।।का० ।।चि० ।।३।।
(७) पंढरीनाथा काकड आरती


भक्तिचिया पोटीं बोधकांकडा ज्योती ।
पंचप्राण जीवेंभावे ओवाळू आरती ॥१॥ .


ओवाळू आरती माझ्या पंढरीनाथा ।
दोन्ही कर जोडोनी चरणी ठेविला माथा ॥ध्रु.॥


काय महिमा वर्ण आतां सांगणे किती ।
कोटी ब्रह्महत्या मुख पाहतां जाती ।।२।।


राई रखुमाबाई उभ्या दोघी दो बाहीं।
मयुरपिच्छ चामरें ढाळिति ठायी ठायी ॥३॥


तुका म्हणे दीप घेउनि उन्मनीत शोभा ।।
विटेवरी उभा दिसे लावण्यगाभा ।। ४ ।। ओवाळू।।
(८) पद (उठा उठा)


उठा साधुसंत साधा आपुलाले हित ।
जाईल जाईल हा नरदेह मग कैंचा भगवंत ।।१।।


उठोनियां पहाटें बाबा उभा असे विटे।
चरण तयांचे गोमटे अमृतदृष्टी अवलोका ।।२।।


उठा उठा हो वेगेंसीं चला जाऊंया राउळासी।
जळतील पातकांच्या राशीकांकड आरती देखिलिया ।।३।।


जागें करा रूक्मिणीवर, देव आहे निजसुरांत ।
वेगें लिंबलोण करा दृष्ट होईल तयासी ।। ४ ।।


दारी वाजंत्री वाजती ढोल दमामे गर्जती ।।
होते कांकड आरती माझ्या सद्गुरूरायांची ।।५।।


सिंहनाद शंखभेरी आनंद होतसे महाद्वारी ।
केशवराज विटेवरी नामा चरण वंदितो ।।६।।


साईनाथगुरू माझे आई। मजला ठाव द्यावा पायीं ।।
दत्तराज गुरू माझे आई । मजला ठाव द्यावा पायीं ।।
श्रीसच्चिदानंद सद्गुरु साईनाथ महाराज की जय ।
(९) श्री साईनाथप्रभाताष्टक (पृथ्वी )


प्रभातसमयीं नभा शुभ रविप्रभा फांकली ।
स्मरे गुरू सदा अशा समयिं त्या छळे ना कली ।।
म्हणोनि कर जोडूनी करूं आता गुरूप्रार्थना ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ॥१॥


तमा निरसि भानु हा गुरूहि नासि अज्ञानता ।
परंतु गुरूची करी न रविही कधी साम्यता ।
पुन्हां तिमिर जन्म घे गुरु कृपेनि अज्ञानता ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ।।२।।


रवि प्रगट होउनि त्वरित घालवी आलसा ।
तसा गुरूहि सोडवी सकल दृष्कृती लालसा ।।
हरोनि अभिमानही जडवि तत्पदी भावना ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ॥३॥


गुरूसि उपमा दिसे विधिहरीहरांची उणी ।
कुठोनि मग येई ती कवनिं या उगी पाहुणी ।।
तुझीच उपमा तुला बरवि शोभते सज्जना ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ।।४।।


समाधि उतरोनियां गुरू चला मशिदीकडे ।
त्वदीय वचनोक्ति ती मधुर वारिती सांकडें ।।
अजातरिपुसद्गुरु अखिलपातका भंजना ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ।।५।।


अहा सुसमयासि या गुरू उठोनियां बैसले ।
विलोकुनि पदाश्रिता तदिय आपदे नासिलें ॥
असा सुहितकारि या जगति कोणिही अन्य ना ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ।।६।।


असे बहुत शाहणा परि न ज्या गुरूची कृपा ।
नतत्स्वहित त्या कळे करितसे रिकाम्या गपा ।।
जरी गुरूपदा धरी सुदृढ भक्तिनें तो मना ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ।। ७ ।।


गुरो विनंति मी करी हृदयमंदिरीं या बसा ।
समस्त जग हें गुरूस्वरूपची ठसो मानसा ।।
घडो सतत सत्कृती मतिहि दे जगत्पावना ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ।।८।।


प्रेमें या अष्टकासी पढुनि गुरूवरा प्रार्थिती जे प्रभातीं ।
त्यांचे चित्तासि देतो अखिल हरूनियां भ्रांति मी नित्य शांति ।।
ऐसें हें साईनाथ कथुनि सुचविलें जेवि या बालकासी ।
तेंवी त्या कृष्णपायी नमुनि सविनयें अर्पितों अष्टकासी॥९॥
(१०) रहम नजर (पद)


साई रहम नजर करना, बच्चों का पालन करना ॥ध्रु०॥
जाना तुमने जगत्पसारा, सबही झूठ जमाना ॥ साई० ॥१॥
मैं अंधा हूँ बंदा आपका, मुझको चरण दिखलाना । साई० ॥२॥
दास गनू कहे अब क्या बोलूं, थक गई मेरी रसना ।। साई० ॥३॥
(११) पद


रहम नजर करो, अब मोरे साईं, तुमबिन नहीं मुझे मां-बाप-भाई
रहम नजर करो॥ध्रु०॥
मैं अंधा हूं बंदा तुम्हारा । मैं ना जानूं, अल्लाइलाही ।
रहम० ॥१॥


खाली जमाना मैंने गमाया । साथी आखिरी तू और न कोई ॥ रहम० ॥२॥
अपने मशीद का झाडूगनू है । मालिक हमारे, तुम बाबा साईं ॥ रहम० ।।३।।
(१२) पद


तुज काय देऊं सावळ्या मी खाया तरी ।
मी दुबळी बटिक नाम्याची जाण श्रीहरी ।
उच्छिष्ट तुला देणे ही गोष्ट ना बरी तूं
जगन्नाथ, तुज देऊ कशी रे भाकरी ।


नको अंत मदीय पाहूं सख्या भगवंता । श्रीकांता ।
मध्यान्हरात्र उलटोनि गेली ही आतां ।आण चित्ता ।


जा होईल तुझा रे कांकडा की राउळांतरीं ।
आणतील भक्त नैवद्यहि नानापरी ।।


(१३) पद श्रीसद्गुरू


श्रीसद्गुरू बाबासाई तुजवांचुनि आश्रय नाही,
भूतलीं ॥धु०॥
मी पापी पतित धीमंदा ।
तारणे मला गुरूनाथा, झडकारी ॥१॥
तूंशांतिक्षमेचा मेरू।
तूं भवार्णवींचें तारूं, गुरूवरा ॥२॥
गुरूवरा मजसि पामरा, अतां उद्धरा, त्वरित लवलाही,
मी बुडतो भवभय डोही उद्धरा ।।
श्रीसद्गुरु० ॥३॥
ॐ राजाधिराज योगिराज परब्रह्म "श्री सच्चिदानंद सद्गुरु साईनाथ महाराज

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Shri Sai baba Shirdi - Shejarti

Shri Sai baba Shirdi - Shejarti

*!! ॐ साई राम !!*
*श्री साईबाबा संस्थान विश्वस्त व्यवस्था,शिर्डी*
*!! ॐ Sai Ram !!*
*Shri Saibaba Sansthan Trust, Shirdi*
*आरती :- शेजारती*
*सोमवार दिनांक ‌०३ एप्रिल २०२३*     
*Aarti : Shejarti*
*Monday 03 April 2023*


*🌻शेज आरती🌻*

*🌻श्री सच्चिदानंद सद्गुरु श्री साईं नाथ महाराज की जय 🌻*

*आरती माइया सदगुरुनाथा*
*ओंवाळूं आरती माइया सदगुरुनाथा,माइया साईनाथा । जे उत्तम*
*पांचाही तत्वांचा दीप लाविला आतां ।।*
*निर्गुणाची स्थिति कैसी आकारा आली । बाबा आकारा आली ।*
*सर्वा घटीं भरुनि उरली सांई माउली ।। ओंवाळूं 0 ।।*
*रज तम सत्व तिघे माया प्रसवली । बाबा माया प्रसवली ।*
*मायेचिये पोटीं कैसी माया उद्घवली ।। ओंवाळूं 0 ।।*
*सप्तसागरी कैसा खेळ मांडीला । बाबा खेळ मांडीला ।*
*खेळूनियां खेळ अवघा विस्तार केला ।। ओंवालूं 0 ।।*
*ब्रहांडींची रचना दाखविली डोळां । बाबा दाखविली डोळां ।*
*तुका म्हणे माझा स्वामी कृपाळू भोळा ।। ओंवाळू 0।।*

*2. आरती ज्ञानराजा*

*आरती ज्ञानराजा*
*आरती ज्ञानराजा । महाकैवल्यतेजा ।*
*सेविती साधुसंत । मनु वेधला माझा ।।*
*लोपलें ज्ञान जगीं । हित नेणती कोणी ।*
*अवतार पांडुरंग । नाम ठेविलें ज्ञानी ।।आरती ज्ञानराजा 0।।*
*कनकाचें ताट करीं । उभ्या गोपिका नारी ।*
*नारद तुंबरहो । सामगायन करी ।। आरती ज्ञानराजा 0।।*
*प्रगट गुहृ बोले । विश्व ब्रहचि केलें ।*
*राम जनार्दनी । पायीं मस्तक ठेविलें ।। आरती ज्ञानराजा 0।।*

*3. आरती तुकारामा*

*आरती तुकारामा*
*आरती तुकारामा । स्वामी सदगुरुधामा ।*
*सच्चिदानन्द मूर्ती । पाय दाखवीं आम्हां ।। आरती तुकारामा ।*
*राघवें सागरांत । जैसे पाषाण तारिले ।*
*तैसे हे तुकोबाचे । अभंग रक्षिले ।। आरती तुकारामा ।*
*तुकितां तुलनेसी । ब्रहृ तुकासी आलें ।*
*म्हणोनी रामेश्वरं । चरणीं मस्तक ठेविलें ।। आरती तुकारामा ।*

*4.जय जय साईनाथ आता*

*जय जय साईनाथ आतां पहुडावें मंदिरीं हो ।। (x2)*
*आळवितों सप्रेमें तुजला आरति घेउनि करीं हो ।। जय 0 ।*
*रंजविसी तूं मधुर बोलुनी माय जशी निज मुला हो ।।(x2)*
*भोगिसि व्याधी तूंच हरुनियां* *निजसेवकदःखाला हो ।। (x2)*
*धांवुनि भक्तव्सन हरिसी दर्शन देसीत्याला हो ।।(x2)*
*झाले असतील कष्ट अतिशय तुमचे या देहाला हो ।। जय 0 ।*
*क्षमा शयन सुंदर ही शोभा सुमनशेज त्यावरी हो । (x2)*
*ध्यावी तोडी भक्त-जनांची पूजनादि चाकरी हो ।। (x2)*
*ओंवाळीतों पंच्राण, ज्योति सुमती करीं हो ।। (x2)*
*सेवा किंकर भक्त प्रीती अत्तर परिमळ वारी हो ।। जय 0 ।*
*सोडुनि जाया दुःख वाटतें साई त्वच्चर णांसी हो । (x2)*
*आज्ञेस्तव तव आशीप्रसाद घेउनि निजसदनासी हो ।।(x2)*
*जातों आतां येऊं पुनरपि त्वच्चरणाचे पाशीं हो । (x2)*
*उठवूं तुजला साइमाउले निजहित सादायासी हो ।। जय 0 ।*

*5.आतां स्वामी सुखें निद्रा*

*आतां स्वामी सुखें निद्रा करा अवधूता । बाबा करा साइनाथा ।।*
*चिन्मय हें सुखधामा जाउनि देवा पहुडा एकांता ।।*
*वैराग्याचा कुंचा घेउनि चौक झाडीला । बाबा चौक झाडीला ।।*
*तयावरी सुप्रेमाचा शिडकावा दिधला ।। आतां 0 ।।*
*पायघडया घातल्या सुंदर नवविधा भक्ती । बाबा नवविधा भक्ती ।।*
*ज्ञानाच्या समया लावुनि उजळल्या ज्योती ।। आतां 0 ।।*
*भावार्थाचा मंचक हृदयाकाशी टांगिला । बाबा काशीं टांगिला ।।*
*मनाचीं सुमनें करुनी केलें शेजेला ।। आतां 0 ।।*
*द्घैताचें पाट लावुनि एकत्र केलें । बाबा एकत्र केलें ।।*
*दुर्बुद्घीच्या गांठी सोडूनि पडदे सोडीले ।। आतां 0 ।।*
*आशा तृष्णा कल्पनेचा सांडुनि* *गलबला । बाबा सांडुनि गलबला ।।*
*दया क्षमा शांति दासी उभ्या सेवेला ।। आतां 0 ।।*
*अलक्ष्य उन्मनी घेउनी बाबा नाजुक दुःशाला । बाबा नाजुक दुःशाला ।।*
*निरंजन सदगुरु स्वामी निजवीले शेजेला ।। आतां 0 ।।*
*।। सच्चिदानद सद्गुरु साईंनाथ महाराज की जय ।।*
*।। श्री गुरुदेव दत्त ।।*

*6.पाहें प्रसादाची वाट*

*पाहें प्रसादाची वाट । घावें धुवोनियां ताट ।।*
*शेष घेउनी जाईन । तुमचें झालिया भोजन ।।*
*झालों आतां एकसवा । तुम्हा आळंवावो देवा ।।*
*तुका म्हणे आतां चित्त । करुनी राहिलों निश्चित ।।*

*7.पद, प्रसाद मिळाल्यावर

*पावला प्रसाद आतां विठो निजावें । बाबा आता निजावे ।*
*आपला तो श्रम कळों येतसे भावें ॥*
*आतां स्वामी सुखें निद्रा करा गोपाळा । बाबा साई दयाला।*
*पुरलें मनोरथ जातों आपुल्या स्थळा ॥*
*तुम्हांसी जागवूं आम्हीं आपुलिया चाडा । बाबा आपुलिया चाडा ।*
शुभाशुभ कर्मे दोष हरावया पीडा ॥ आतां स्वामी 0।।
तुका म्हणे दिधलें उच्छिष्टाचें भोजन । उच्छिष्टाचें भोजन ।
*नाहीं निवडिलें आम्हां आपुलिया भिन्न ॥ आतां स्वामी 0।।।*  

           *🌻ॐ नमोः श्री गुरुदेव दत्त।🌻*

🌻जयघोष - ॐ अनंतकोटि ब्रम्हांड नायक राजाधिराज योगीराज पर ब्रम्ह श्री सच्चिदानंद सद्गुरु साईनाथ महाराज की जय॥🌻*

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अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। इनसे संबंधित किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें

Shri Saibaba Shirdi-Dhup-Aarti

🕉️ Sai Ram !!*
*Shri Saibaba Sansthan Trust, Shirdi*
*Aarti* :- *Dhup-Aarti*
*Saturday 01 April 2023



*!! 🕉️ साई राम !!*
*श्री साईबाबा संस्थान विश्वस्त व्यवस्था,शिर्डी*
*आरती :- धुप-आरती*
*शनिवार दिनांक ०१ एप्रिल २०२३*
*!! 🕉️ Sai Ram !!*
*Shri Saibaba Sansthan Trust, Shirdi*
*Aarti* :- *Dhup-Aarti*

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