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Pitru Paksha 2024 -- पितृ पक्ष विशेष ( 17 सितंबर से 02 ओक्ट़बर )


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  Pitru Paksha 2024 पितृ पक्ष विशेष

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एकैकस्य तिलैर्मिश्रांस्त्रींस्त्रीन
दद्याज्जलाज्जलीन।
यावज्जीवकृतं पापं तत्क्षणदेव नश्यति।



ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी जब सूर्य नारायण कन्या राशि में विचरण करते हैं तब पितृलोक पृथ्वी लोक के सबसे अधिक नजदीक आता है। श्राद्ध का अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से है। जो मनुष्य उनके प्रति उनकी तिथि पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार फलफूल, अन्न, मिष्ठान आदि से ब्राह्मण को भोजन कराते हैं। उस पर प्रसन्न होकर पितृ उसे आशीर्वाद देकर जाते हैं। पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध दो तिथियों पर किए जाते हैं, प्रथम मृत्यु या क्षय तिथि पर और द्वितीय पितृ पक्ष में जिस मास और तिथि को पितर की मृत्यु हुई है अथवा जिस तिथि को उसका दाह संस्कार हुआ है। वर्ष में उस तिथि को एकोदिष्ट श्राद्ध में केवल एक पितर की संतुष्टि के लिए श्राद्ध किया जाता है। इसमें एक पिंड का दान और एक ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है। पितृपक्ष में जिस तिथि को पितर की मृत्यु तिथि आती है, उस दिन पार्वण श्राद्ध किया जाता है। पार्वण श्राद्ध में 9 ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है, किंतु शास्त्र किसी एक सात्विक एवं संध्यावंदन करने वाले ब्राह्मण को भोजन कराने की भी आज्ञा देते हैं।


इस सृष्टि में हर चीज का अथवा प्राणी का जोड़ा है। जैसे - रात और दिन, अँधेरा और उजाला, सफ़ेद और काला, अमीर और गरीब अथवा नर और नारी इत्यादि बहुत गिनवाये जा सकते हैं। सभी चीजें अपने जोड़े से सार्थक है अथवा एक-दूसरे के पूरक है। दोनों एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। इसी तरह दृश्य और अदृश्य जगत का भी जोड़ा है। दृश्य जगत वो है जो हमें दिखता है और अदृश्य जगत वो है जो हमें नहीं दिखता। ये भी एक-दूसरे पर निर्भर है और एक-दूसरे के पूरक हैं। पितृ-लोक भी अदृश्य-जगत का हिस्सा है और अपनी सक्रियता के लिये दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर है।


धर्म ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।


पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।


श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।


श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं।


पितरों की संतुष्टि के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले तर्पर्ण, ब्राह्मण भोजन, दान आदि कर्मों को श्राद्ध कहा जाता है। इसे पितृयज्ञ भी कहते हैं। श्राद्ध के द्वारा व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है और पितरों को संतुष्ट करके स्वयं की मुक्ति के मार्ग पर बढ़ता है।


श्राद्ध या पिण्डदान दोनो एक ही शब्द के दो पहलू है पिण्डदान शब्द का अर्थ है अन्न को पिण्डाकार मे बनाकार पितर को श्रद्धा पूर्वक अर्पण करना इसी को पिण्डदान कहते है दझिण भारतीय पिण्डदान को श्राद्ध कहते है।


श्राद्ध के प्रकार
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शास्त्रों में श्राद्ध के निम्नलिखित प्रकार बताये गए हैं।


1👉 नित्य श्राद्ध : वे श्राद्ध जो नित्य-प्रतिदिन किये जाते हैं, उन्हें नित्य श्राद्ध कहते हैं. इसमें विश्वदेव नहीं होते हैं।


2👉 नैमित्तिक या एकोदिष्ट श्राद्ध : वह श्राद्ध जो केवल एक व्यक्ति के उद्देश्य से किया जाता है. यह भी विश्वदेव रहित होता है. इसमें आवाहन तथा अग्रौकरण की क्रिया नहीं होती है. एक पिण्ड, एक अर्ध्य, एक पवित्रक होता है।


3👉 काम्य श्राद्ध
: वह श्राद्ध जो किसी कामना की पूर्ती के उद्देश्य से किया जाए, काम्य श्राद्ध कहलाता है।


4👉 वृद्धि (नान्दी) श्राद्ध : मांगलिक कार्यों ( पुत्रजन्म, विवाह आदि कार्य) में जो श्राद्ध किया जाता है, उसे वृद्धि श्राद्ध या नान्दी श्राद्ध कहते हैं।


5👉 पावर्ण श्राद्ध : पावर्ण श्राद्ध वे हैं जो भाद्रपद कृष्ण पक्ष के पितृपक्ष, प्रत्येक मास की अमावस्या आदि पर किये जाते हैं. ये विश्वदेव सहित श्राद्ध हैं।


6👉 सपिण्डन श्राद्ध : वह श्राद्ध जिसमें प्रेत-पिंड का पितृ पिंडों में सम्मलेन किया जाता है, उसे सपिण्डन श्राद्ध कहा जाता है।


7👉 गोष्ठी श्राद्ध : सामूहिक रूप से जो श्राद्ध किया जाता है, उसे गोष्ठीश्राद्ध कहते हैं।


8👉 शुद्धयर्थ श्राद्ध : शुद्धयर्थ श्राद्ध वे हैं, जो शुद्धि के उद्देश्य से किये जाते हैं।


9👉 कर्मांग श्राद्ध : कर्मांग श्राद्ध वे हैं, जो षोडश संस्कारों में किये जाते हैं।


10👉 दैविक श्राद्ध : देवताओं की संतुष्टि की संतुष्टि के उद्देश्य से जो श्राद्ध किये जाते हैं, उन्हें दैविक श्राद्ध कहते हैं।


11👉 यात्रार्थ श्राद्ध : यात्रा के उद्देश्य से जो श्राद्ध किया जाता है, उसे यात्रार्थ कहते हैं।


12👉 पुष्टयर्थ श्राद्ध : शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक पुष्टता के लिये जो श्राद्ध किये जाते हैं, उन्हें पुष्टयर्थ श्राद्ध कहते हैं।


13👉 श्रौत-स्मार्त श्राद्ध : पिण्डपितृयाग को श्रौत श्राद्ध कहते हैं, जबकि एकोदिष्ट, पावर्ण, यात्रार्थ, कर्मांग आदि श्राद्ध स्मार्त श्राद्ध कहलाते हैं।


कब किया जाता है श्राद्ध?
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श्राद्ध की महत्ता को स्पष्ट करने से पूर्व यह जानना भी आवश्यक है की श्राद्ध कब किया जाता है. इस संबंध में शास्त्रों में श्राद्ध किये जाने के निम्नलिखित अवसर बताये गए हैं ।


1👉 भाद्रपद कृष्ण पक्ष के पितृपक्ष के 16 दिन।


2👉 वर्ष की 12 अमावास्याएं तथा अधिक मास की अमावस्या।


3👉 वर्ष की 12 संक्रांतियां।


4👉 वर्ष में 4 युगादी तिथियाँ।


5👉 वर्ष में 14 मन्वादी तिथियाँ।


6👉 वर्ष में 12 वैध्रति योग।


7👉 वर्ष में 12 व्यतिपात योग।


8👉 पांच अष्टका।


9👉 पांच अन्वष्टका।


10👉 पांच पूर्वेघु।


11👉 तीन नक्षत्र: रोहिणी, आर्द्रा, मघा।


12👉 एक कारण : विष्टि।


13👉 दो तिथियाँ : अष्टमी और सप्तमी।


14👉 ग्रहण : सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण।


15👉 मृत्यु या क्षय तिथि।


किसके निमित्त कौन कर सकता है श्राद्ध
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हिन्दू धर्म के मरणोपरांत संस्कारों को पूरा करने के लिए पुत्र का प्रमुख स्थान माना गया है। शास्त्रों में लिखा है कि नरक से मुक्ति पुत्र द्वारा ही मिलती है। इसलिए पुत्र को ही श्राद्ध, पिंडदान का अधिकारी माना गया है और नरक से रक्षा करने वाले पुत्र की कामना हर मनुष्य करता है। इसलिए यहां जानते हैं कि शास्त्रों के अनुसार पुत्र न होने पर कौन-कौन श्राद्ध का अधिकारी हो सकता है।


👉 पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए।


👉 पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है।


👉 पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में संपिंडों को श्राद्ध करना चाहिए।


👉 एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है।


👉 पुत्री का पति एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं।


👉 पुत्र के न होने पर पौत्र या प्रपौत्र भी श्राद्ध कर सकते हैं।


👉 पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के न होने पर विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है।


👉 पत्नी का श्राद्ध तभी कर सकता है, जब कोई पुत्र न हो।


👉 पुत्र, पौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है।


👉 गोद में लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी है।


👉 कोई न होने पर राजा को उसके धन से श्राद्ध करने का विधान है।


क्यों आवश्यक है श्राद्ध?
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श्राद्धकर्म क्यों आवश्यक है, इस संबंध में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं।


1👉 श्राद्ध पितृ ऋण से मुक्ति का माध्यम है।


2👉 श्राद्ध पितरों की संतुष्टि के लिये आवश्यक है।


3👉 महर्षि सुमन्तु के अनुसार श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता का कल्याण होता है।


4👉 मार्कंडेय पुराण के अनुसार श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितर श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विघ्या, सभी प्रकार के सुख और मरणोपरांत स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते हैं।


5👉 अत्री संहिता के अनुसार श्राद्धकर्ता परमगति को प्राप्त होता है।


6👉 यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो पितरों को बड़ा ही दुःख होता है।


7👉 ब्रह्मपुराण में उल्लेख है की यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो पितर श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को शाप देते हैं और उसका रक्त चूसते हैं. शाप के कारण वह वंशहीन हो जाता अर्थात वह पुत्र रहित हो जाता है, उसे जीवनभर कष्ट झेलना पड़ता है, घर में बीमारी बनी रहती है। श्राद्ध-कर्म शास्त्रोक्त विधि से ही करें पितृ कार्य कार्तिक या चैत्र मास मे भी किया जा सकता है।


श्राद्ध में कुश और तिल का महत्व
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दर्भ या कुश को जल और वनस्पतियों का सार माना जाता है। यह भी मान्यता है कि कुश और तिल दोंनों विष्णु के शरीर से निकले हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु, महेश कुश में क्रमश: जड़, मध्य और अग्रभाग में रहते हैं। कुश का अग्रभाग देवताओं का, मध्य भाग मनुष्यों का और जड़ पितरों का माना जाता है। तिल पितरों को प्रिय हैं और दुष्टात्माओं को दूर भगाने वाले माने जाते हैं। मान्यता है कि बिना तिल बिखेरे श्राद्ध किया जाये तो दुष्टात्मायें हवि को ग्रहण कर लेती हैं।


महालयश्राद्ध 2024 की तिथियां
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किस दिन कौन से होते हैं श्राद्ध 

मंगलवार, 17 सितंबर 2024 - पूर्णिमा का श्राद्ध 

बुधवार, 18 सितंबर 2024,- प्रतिपदा का श्राद्ध 

गुरुवार, 19 सितंबर 2024- द्वितीय का श्राद्ध

शुक्रवार, 20 सितंबर 2024-तृतीया का श्राद्ध

शनिवार, 21 सितंबर 2024- चतुर्थी का श्राद्ध 

रविवार, 22 सितंबर 2024- पंचमी का श्राद्ध

सोमवार, 23 सितंबर 2024- षष्ठी का श्राद्ध और सप्तमी का श्राद्ध 
मंगलवार, 24 सितंबर 2024- अष्टमी का श्राद्ध 

बुधवार, 25 सितंबर 2024- नवमी का श्राद्ध 

गुरुवार, 26 सितंबर 2024- दशमी का श्राद्ध 

शुक्रवार, 27 सितंबर 2024- एकादशी का श्राद्ध 

रविवार, 29 सितंबर 2024- द्वादशी का श्राद्ध और माघ श्रद्धा 

सोमवार, 30 सितंबर 2024- त्रयोदशी श्राद्ध 

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024- चतुर्दशी का श्राद्ध 

बुधवार, 2 अक्टूबर 2024- सर्वपितृ अमावस्या

किस समय करें श्राद्ध कर्म 
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष में सुबह और शाम के समय देवी-देवताओं की पूजा होती है. वहीं दोपहर का समय पितरों को समर्पित होता है. इसलिए दोपहर 12:00 बजे श्राद्ध कर्म किया जाता है. श्राद्ध कर्म के लिए कुतुप और रौहिण मुहूर्त सबसे अच्छा माना जाता हैं. जब आपको श्राद्ध कर्म करना हो तो सुबह सबसे पहले स्नान आदि करें और इसके बाद अपने पितरों का तर्पण करें. इसके अलावा श्राद्ध के दिन कौवे, चींटी, गाय, देव, कुत्ते और पंचबलि भोग देना चाहिए और ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए.



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ओम साईं राम 
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Shri Saibaba Shirdi Madhyanh- Aarti Darshan

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 *!! ॐ श्री साईं शिर्डीनाथायनमः !!*


   🙏 *माध्यान्ह आरती* 🙏 
          पंचारती अभंग*
घेवुनिया पंचाआरती, करू बाबाची आरती करू साईची आरती बाबांची आरती ऊठा ऊठा हाे बांधव,आेवाळु हा रघुमाधव
ll2ll करूनिया स्थीर मन पाहु गंभीर हे ध्यान साईचे ही ध्यान पाहु गंभीर हे ध्यान कृष्णनाथ दत्त साई. जड़ो चित्त तुझ पायीll

           *आरती साईबाबा*

आरती साईबाबा । सौख्यदातार जीवा।
चरणरजातली । द्यावा दासा विसावा,  भक्ता विसावा ।। आ०।।ध्रु ०।।
जाळुनियां अनंग। स्वस्वरूपी राहेदंग ।
मुमुक्षूजनां दावी । निज डोळा श्रीरंग ।। आ०।। १ ।।
जयामनी जैसा भाव । तया तैसा अनुभव ।
दाविसी दयाघना । ऐसी तुझीही माव ।। आ०।। २ ।।
तुमचे नाम ध्याता । हरे संस्कृती व्यथा ।
अगाध तव करणी ।  मार्ग दाविसी अनाथा ।। आ०।। ३ ।।
कलियुगी अवतार । सगुण परब्रह्मः साचार ।
अवतीर्ण झालासे । स्वामी दत्त दिगंबर ।। द०।। आ०।। ४ ।।
आठा दिवसा गुरुवारी । भक्त करिती वारी ।
प्रभुपद पहावया । भवभय निवारी ।। आ०।। ५ ।।
माझा निजद्रव्यठेवा । तव चरणरज सेवा ।
मागणे हेचि आता । तुम्हा देवाधिदेवा ।। आ०।। ६ ।।
इच्छित दिन चातक। निर्मल तोय निजसुख ।
पाजावे माधवा या । सांभाळ आपुली भाक ।। आ०।। ७ ।। &

                *जय देव जय देव*                

जय देवा जय देवा दत्ता अवधूता! साई अवधूता!जोडुनी कर तव चरणी ठेवतो माथा!! जय देवा जय देवा
अवतरसीं तु येता धर्मातें ग्लानी 
नास्तिकानांही तु लाविसी निजभजनी
दाविसी नानालिला असंख्या रुपानी 
हरिसी दिनांचे तू संकट दिनरजनी.. आरती.. 
यवनस्वरुपि एक्या दर्शन त्वां दिधले
संशय निरसुनिया तदद्वैता घालविले 
गोपिचंदा मंदा त्वाची उद्धरिले 
मोमीन वंशी जन्मुनी लोका तारियले 
.. जय... 
भेदन तत्वी हिंदू यवनाची काही 
दावायासी झाला पुनरपी नरदेही 
पाहासी प्रेमाने तु हिंदू.. यवनाहीं 
दाविसी आत्मतवाने व्यापक हा साई 
... जय... 
देवा साईनाथा त्वत्पदनत भावे 
परमाया मोहित जनमोचनी झणि व्हावे. 
त्वत्कृपये सकलांचे संकट निरसावे 
देशिल तरी तरी दे त्वध्यश कृष्णाने गावे... जय..

               *अभंग*

शिर्डी माझे पंढरपुर । साईबाबा रमावर ।। १ ।।
शुद्ध भक्ती चंद्रभागा । भाव पुंडलिक जागा ।। २ ।।
या हो या हो अवघे जन । करा बाबांसी वंदन ।। ३ ।।
गणु म्हणे बाबा साई । धाव पाव माझे आई ।। ४ ।।

              *नमन*

       घालीन लोटांगण,  वंदिन चरण,
       डोळ्यांनी पाहीन रूप तुझे ।।
      प्रेमे आलिंगन,  आनंदे पुजिन,
      भावे ओवाळिन म्हणे नमः ।। १ ।।
      त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
      त्वमेव बंधूश्च सखा त्वमेव ।
      त्वमेव विद्या द्रविण त्वमेव,
      त्वमेव सर्व ममदेव देव ।। २ ।।
      कायेन वाचा मनसैन्द्रीयेवा,
      बुध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावा ।
      करोमी यदन्यंसकल परस्मै,
      नारायणाइति समर्पयामी ।। ३ ।।
      अच्युतम केशवम् रामनारायणं,
      कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरी ।
      श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभम,
      जानकीनायकम् रामचंद्र भजे ।। ४ ।।

              *नामस्मरण*

     हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
     हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।

            *पुषपांजली (मंत्र पुष्पम)*

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्न ।
ते ह नाकं महिमानः सचंत यत्र पूर्वे साध्या संति देवा: ।।
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्यसाहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मे कामान्कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो दधातु।
कुबेराय वैश्रवणाय । महाराजा नमः । ॐ स्वस्ति ।
साम्राज्य्मं  भौज्य्मं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्य
राज्य माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी
स्यात्सार्वभौमः सार्वायूष आंतादापरार्धात्
पृथिव्यैसमुद्रपर्यताया एकराळीती ।
तदप्येष श्लोकोsभिगीतो मरूतः परिवेष्टारो
मरूत्तस्यावसनगृहे आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति ।।

।। श्री नारायण वासुदेवाय सचिदानंद सदगुरु साईनाथ महाराज की जय ।।
                   
              *नमस्काराष्टक*

अनंता तुला ते कसे रे स्तवावे । अनंता तुला ते कसे रे नमावे ।।
अनंत मुखांचा  शिणे शेष गाथा । नमस्कार साष्टांग श्रीसाईनाथा ।। १ ।।
स्मरावे मनी त्वत्पदा नित्य भावे । उरावे तरी भक्तिसाठी स्वभावे ।।
तरावे जगा तारुनी मायताता । नमस्कार साष्टांग श्री साईनाथा ।। २ ।।
वसे जो सदा दावया संत लीला ।  दिसे अज्ञ लोकापरी जो जनाला ।।
परी अंतरि ज्ञान कैवल्यदाता । नमस्कार साष्टांग श्री साईनाथा ।। ३ ।।
बरा लाधला जन्म हां मानवाचा । नरा सार्थका साधनीभुत साचा ।।
धरु साईप्रेमा गळाया अहंता ।  नमस्कार साष्टांग श्री साईनाथा ।। ४ ।।
धरावे करी सान अल्पज्ञ बाला । करावे आम्हा धन्य चुंबोनि घाला ।।
मुखी घाल प्रेमे खरा ग्रास आता । नमस्कार साष्टांग श्री साईनाथा ।। ५ ।।
सुरादिक ज्यांच्या पदा वंदिताति । सुरादिक ज्यांचे समानत्व देती ।।
प्रयगादि तीर्थेपदि नम्र होता । नमस्कार साष्टांग श्री साईनाथा ।। ६ ।।
तुझ्या ज्या पदा पाहता गोपबाली । सदा रंगली चित्स्वरुपि मिळाली ।।
करी रासक्रीड़ा सवे कृष्णनाथा । नमस्कार साष्टांग श्री साईनाथा ।। ७ ।।
तुला मागतो मागणे एक द्यावे । करा जोडितो दिन अत्यंत भावे ।।
भवि मोहनीराज हा तारी आता । नमस्कार साष्टांग श्री साईनाथा ।। ८ ।।

             *ऐसा येई बा*
               
ऐसा येई बा । साई दिगंबरा । अक्षयरूप अवतारा। सर्वही व्यापक तू ।
श्रुतिसारा । अनुसया त्रिकुमारा । बाबा येई बा ।। ध्रु ।।
काशी स्नान जप, प्रतिदिवशी । कोल्हापुर भिक्षेसि । निर्मल नदी तुंगा,
जल प्राशी । निद्रा माहुर देशी ।। ऐसा येईबा ।। १ ।।
झोळी लोंबतसे वाम करी । त्रिशुल डमरू धारी । भक्ता वरद सदा सुखकारी ।
देशील मुक्ति चारि ।। ऐसा येईबा ।। २ ।।
पायी पादुका । जपमाला कमंडलू मृगछाला । धारण करिशि बा ।
नागजटा मुगट शोभतो माथा ।। ऐसा येईबा ।। ३ ।।
तत्पर तुझ्या या  जे ध्यानी । अक्षय त्यांचे सदानि । लक्ष्मी वास करी दिनरजनी ।
रक्षिसि संकट वारुनि ।। ऐसा येईबा ।। ४ ।।
या परीध्यान तुझे गुरुराया । दृश्य करी नयना या। पूर्णा नंद सूखे ही काया ।
लाविसि हरीगुण गाया ।। ऐसा येईबा ।। ५ ।।
                       
                     *श्रीसाईनाथमहिम्नस्त्रोत्रम*
     
सदा सत्स्वरूपं  चिदानंदकंदं,  जगत्समभवस्थानसंहारहेतुम ।    
स्वभक्तेछयामानुशं दर्शयन्तः,  नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। १ ।।
भवध्वांतविध्वंसमर्तांडमिड्य, मनोवागतीतं मुनीर्ध्यानग्म्यम् ।       
जगदव्यापकं निर्मलं निर्गुणं त्वा, नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। २ ।।
भवांभोधीमग्नादिर्तानां जनानां, स्वपादाश्रितानां स्वभक्तिप्रियाणाम् ।        
समुद्धारणार्थ कल्लो संभवंतं, नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। ३ ।।      
सदा निंबवृक्ष्यस मूलाधिवसात्सुधास्त्राविणं तिक्तमप्यप्रियं तम् ।       
तरुं कल्पवृक्षाधिकं साधयंतं, नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। ४ ।।      
सदा कल्पवृक्ष्यस तस्यधिमुले भवद्भावबुद्ध्या सपर्यादिसेवाम् ।
नृणा कुर्वतां भुक्तिमुक्तिप्रदं तं, नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। ५ ।।      
अनेकाश्रुतातर्क्यलीला  विलासै: समाविश्र्कृतेशानभास्वत्प्रभावं ।
अहंभावहीनं प्रसन्नात्मभावं, नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। ६ ।।
सतां:विश्रमाराममेवाभिरामं सदा सज्जनै: संस्तुतं सन्नमद्भि: ।
जनामोददं भक्तभद्रप्रदं तं, नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। ७ ।।
अजन्माद्यमेकं परं ब्रम्ह साक्षात्स्व  संभवं-राममेवावतीर्णम् ।         
भवद्दर्शनात्स्यपुनीत: प्रभो हं, नमामीश्र्वरं सदगुरुसाईनाथं ।। ८ ।।
श्री साईंशकृपानिधेखिलनृणां  सर्वार्थसिद्धिप्रद ।
युष्मत्पादरज:प्रभावमतुलं धातापि वक्ताक्षम: ।
सद्भ्क्त्या शरणं कृतांजलिपुट: संप्रापितोस्मि प्रभो,
श्रीमत्साईपरेशपादकमलान्यानछरणयं मम ।। ९ ।।
साईरूपधरराघवोत्तमं,  भक्तकामविबुधद्रुमं प्रभुम ।
माययोपहतचित्तशुद्धये,  चिंतयाम्यहमहर्निशं मुदा ।। १० ।।
शरत्सुधांशुप्रतिमंप्रकाश,  कृपातपात्रं तव साईनाथ ।
त्वदीयपादाब्जसमाश्रितानां स्वच्छयया तापमपाकरोतु ।। ११ ।।
उपसनादैवतसाईनाथ, स्तवैमर्यो पासनिना स्तुतस्वम ।
रमेन्मनो मे तव पाद्युग्मे , भ्रुङ्गो, यथाब्जे मकरंदलुब्ध : ।। १२ ।।   
अनेकजन्मार्जितपापसंक्षयो, भवेद्भावत्पादसरोजदर्शनात।
क्षमस्व सर्वानपराधपुंजकान्प्रसीद साईश गुरो दयानिधे ।। १३ ।।                  
श्री साईनाथचरणांमृतपूतचित्तास्तत्पादसेवानरता: सततं च भक्त्या ।
संसारजन्यदुरितौधविनिर्गतास्ते कवैल्याधाम परमं  समवाप्नुवन्ति ।। १४ ।।
स्तोत्रमेतत्पठेद्भक्त्या यो नरस्तन्मना: सदा ।
सदगुरो: साइनाथस्य कृपापात्रं  भवेद ध्रुवम ।। १५ ।।       
                                      
               *प्रार्थना*

करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वाsपराधम्
विदितमविदितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्रीप्रभो साईनाथ

।। श्री सच्चिदानंद सदगुरु साईनाथ महाराज की जय ।।येओ थैमान
 
*।। राजाधिराज योगिराज परब्रह्म  साईनाथ महाराज की जय ।।*
!! ॐ साईंराम !!
🙏💐🙏
समस्त साईं परिवार के अनंतकोटी प्रणाम साईंचरणकमल मे समर्पित........
🙏💐🙏


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ओम साईं राम 
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